तृप्ति की तलाश में
तृप्ति की तलाश मेंचाहतें लिए अतृप्त मन
भटकता है यहाँ-वहाँ
खोजता है अपना संसार
चाहे धन हो, चाहे ऐश्वर्य
चाहे प्रेम हो, चाहे सुख
मन कभी भी नहीं भरता
हमेशा कुछ न कुछ चाहता है
चाहे ज्ञान हो या शक्ति
नहीं मिलती मन को तृप्ति
परिवर्तन की तलाश में,
हर पल वो नई राहें ढूंढता है,
क्योंकि मन है अतृप्त
उसकी चाहें हैं अनंत
वह हमेशा कुछ न कुछ
नया पाने की चाह में रहता है
यह मन एक चंचल नदी सा
जो अविरल बहती रहती है
एक किनारे से दूसरे किनारे
जाने की वह चाह रखती है
यह मन एक रहस्यमय जंगल
जहाँ अनगिनत रास्ते हैं
मन कभी भी नहीं जानता
कहाँ से जाए और कहाँ जाए
लेकिन फिर भी मन नहीं थकता
यह हमेशा कुछ न कुछ खोजता है
क्या कभी यह मन तृप्त होगा?
यह तो केवल भगवान ही जाने
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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