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मौसम की करवट ने बदले

मौसम की करवट ने बदले

डॉ रामकृष्ण मिश्र
जीवन के पन्ने।
ठंढ निगोड़ी अब गिनती है
बाकी दिन कितने।।

दिन तो अब चाँदी का कुरता
पहने इतराता है।
पछुआ की साँसों में अब भी
बचपन उतराता है।।
काँच-पकी गोरसी अभी से
नहीं लगी बिकने।।

सुना कहीं बादल की झपकी
चिंता बाँट रही है
नीले आसमान में काला
पर्चा साट रही है।।
कोयल मतवाली जाने कब
लगे राग बुनने।।


अपना एक घरौंदा माटी का
महकाता है ।
मन की झंकृति के तारों पर
गान बजाता है।।
कौन बगीचे में आया
बतियाने या सुनने।। ********* रामकृष्ण
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