मन यह सोच कर बिलख उठता है ,
कि कहीं यह प्रेम की डोरी टूट न जाए ।जवानी भर साथ साथ चलकर ,
बुढ़ापे में यह साथ कहीं छूट न जाए ।।
कल की जरूरत कुछ और थी पर ,
आज की जरूरत कुछ और है ।
जिंदगी जीना आसान कभी नहीं होता ,
पर बुढ़ापा शक्तिहीन शरीर का दौर है ।।
जीवन का भला बुरा यहां जमा हो जाता है ,
आदमी का वश नहीं , ईश्वर ही देख पाता है ।
अब उसके हाथ है वो कौन दिन दिखाएगा ,
उसकी लीला को मानव समझ नहीं पाएगा ।।
जय प्रकाश कुंअर
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