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अंगारों की बलिवेदी चढ़ती गयी

अंगारों की बलिवेदी चढ़ती गयी

प्रीत तेरी संजो नयनो में प्रतिपल मैं जलती गयी,
दीप बना उर स्पंदन,अंगारों की बलिवेदी चढ़ती गयी।
सौंप कण-कण को तुझको,
हर कण में मैंने ढूंढा खुद को,
हाय!विसमृत हुई छवि ऐसे,
पाया न तुझे विलग स्वयं से,
तुझे बना स्मृतिविशेष,
अवशेष साधिका चलती गयी...
अंगारों की बलिवेदी प्रतिपल चढ़ती गयी...
विरह के पाषाणी शाप का,
न्यास अनंत वेदना संताप का,
करुण उच्छवास नभ कम्पित,
तेरी दामिनी बाट जोहती नित,
निज कृति में भर स्मृति
शब्दों को रचती गयी...
अंगारों की बलिवेदी प्रतिपल चढ़ती गयी...
डॉ रीमा सिन्हा
लखनऊ
(स्वरचित )
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