जाने क्यों बड़ी हो जाती हैं बेटियां?
लेखक मनोज मिश्र इंडियन बैंक के अधिकारी है|
सुरमई शाम सी, हल्दियाए आम सीसुजल गंगा मान सी, सीप के मोती सी
ये बेटियां होती हैं अद्वितीय अनुपम
पर फिर बड़ी हो जाती हैं बेटियां
जाने क्यों बड़ी हो जाती हैं बेटियां?
किसी माला में मोती सी पिरोई
सुबह की ओस सी तृण पर बिखरी
बहुत अनूठी होती हैं ये बेटियां
फिर बड़ी हो जाती हैं बेटियां
जाने क्यों बड़ी हो जाती हैं बेटियां?
मयूर के पंखों में इंद्रधनुषी रंगत लिए
घर में पायल की रुनझुन सुनाती
सरगम सी होती हैं ये बेटियां
पर फिर बड़ी हो जाती हैं बेटियां
जाने क्यों बड़ी हो जाती हैं बेटियां?
द्विज धर्म का पालन करती हुई
समाज के सृजन का भार कंधे लिए
छोड़ अपनों को अपना घर बनाती
बड़ी होती जाती हैं बेटियां
जाने क्यों बड़ी हो जाती हैं बेटियां?
दिल तोड़ कर जोड़ती परिवार बेटियां
नेह स्नेह तज अनजानी डगर पकड़ती
उत्साह संबल धैर्य का नाम बेटियां
फिर बड़ी हो जाती हैं बेटियां
जाने क्यों बड़ी हो जाती हैं बेटियां?
आती गई बेटियों की बेटियां
फिर से नेह पुष्प खिलाती हुई
स्नेह प्रेम से बुनती जाल माया के यहां
लौटाती बचपन हमारा घर आंगन में
फिर चली जातीं ये नन्हे कदम
तोड़ कर मोह माया के बंधन
हां ये भी बड़ी सी हो गई हैं बेटियां
जाने क्यों बड़ी हो जाती हैं बेटियां?-
मनोज कुमार मिश्र
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