रंगों का त्योहार (भोजपुरी हास्य कविता )
बहता होली के बयार,आइल बा रंगन के बहार,
हमर बाबूजी के डंडा भी
बा बड़ी जोरदार।
गैली जा गांव पे
होली खेले आइल न जा साथी
चढ़ गेल हमनी के
पूरा मस्ती
कीचड़ और गोबर से लगैलाजा
एक दूसरा के जबरदस्ती
तब ले हल्ला उरल
आइलए आइलए बाबूजी
तोड़ दिहे हमनी के हड्डी
कुदली जा अहरा में
बचाव आपन इज्जत पानी
बाबूजी कनखी से ताक के
लाल आंख करके गैलन
छूटे लागल हमनी के पसीना
होली के मज़ा अब खत्म भईल
थर थर कापत द्वारे पे गैली
साथी संगतिया काटे पीछे से चिकुटी
हमनी के देख मार जोर के हसलन
आव जा भीतर ना होई भू सखलन ।
खा जा इमरती और जिलेबी
आइल बा हमनी के होली ।
गुलाल लगा के दहलन आशीर्वाद,
बधाई हो सबको होली का त्योहार।ऋचा श्रावणी
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