"कह व्याकुल मन, मैं क्या लिख दूं?"

"कह व्याकुल मन, मैं क्या लिख दूं?"

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कह व्याकुल मन, मैं क्या लिख दूं?


मन कहता है, तू लिख प्रेम की कहानी,
या सैकड़ों दर्दो की वह टीस अनजानी।


लिख उन आँखों की कहानी,
जो हमेशा रहती हैं नम।


लिख उन हाथों की कहानी,
जो हमेशा रहते हैं खाली।


लिख उन पैरों की कहानी,
जो हमेशा चलते रहते हैं।


लिख उन होंठों की कहानी,
जो हमेशा रहते हैं खामोश।


लिख उन कानों की कहानी,
जो हमेशा सुनते रहते हैं।


लिख उन दिलों की कहानी,
जो हमेशा धड़कते रहते हैं।


लिख उन भावनाओं को जो दबी हैं,
लिख उन सपनों को जो टूटे हैं।


लिख उस दर्द को जो सहन किया है,
लिख उस खुशी को जो कभी मिली नहीं।


लिख जीवन की हर भावना को,
हर रंग को, हर रूप को।


लिख जीवन की हर कहानी,
हर अनुभव को, हर पल को।


लिख जो कुछ भी है तेरे मन में,
लिख जो कुछ भी है तेरे दिल में।


तो लिख, व्याकुल मन, लिख!
दुनिया को बता अपनी कहानी।


क्योंकि लिखना है इस जीवन का सार,
लिखना है 'कमल' तेरे जीने का आधार।


. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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