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"सदियों से सूने अधरों पर"

"सदियों से सूने अधरों पर"

सदियों से सूने अधरों पर,
एक मंद मुस्कान, बहुत है!
जैसे सूरज की पहली किरण,
अंधेरे को चीरती,
उम्मीद की नई किरण,
दिल में जगाती।

अश्रुओं से धुली पलकों पर,
एक मोती सा टिकी,
जैसे कह रही हो,
"सब ठीक हो जाएगा।"

दर्द से भरे चेहरे पर,
एक हल्की मुस्कान,
जैसे कह रही हो,
"हार नहीं मानूंगी।"

सदियों से दबाए गए सपनों को,
एक नई उड़ान,
जैसे कह रही हो,
"अब मैं उड़ूंगी।"

सदियों से सूने अधरों पर,
एक मंद मुस्कान, बहुत है!
यह जीवन की जीत है,
यह आशा की किरण है,
यह उम्मीद की नाव है।

सदियों से सूने अधरों पर,
एक मंद मुस्कान, बहुत है!
यह कहानी है,
एक स्त्री की,
जो हार नहीं मानती।

यह कहानी है,
एक मां की,
जो अपने बच्चों के लिए,
सब कुछ करती है।

यह कहानी है,
एक बहन की,
जो अपने भाई-बहनों के लिए,
हमेशा खड़ी रहती है।

यह कहानी है,
एक पत्नी की,
जो अपने पति के लिए,
सब कुछ त्याग देती है।

यह कहानी है,
एक बेटी की,
जो अपने माता-पिता के लिए,
हमेशा प्यार और सम्मान रखती है।

सदियों से सूने अधरों पर,
एक मंद मुस्कान, बहुत है!
यह कहानी है,
एक स्त्री की,
जो जीवन जीना जानती है।

. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित 
 पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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