ये सर्द हवाएँ
रात यह हेमंत की
कह गया कुछ अनकही
शिशिर की ये सर्द हवाएँ
यादें दे गया उनकी।
मरुथल की गहरी तृष्णा में
शरद समीर का बहाव
लघु जीवन के अंतिम क्षण
ज्यों बूँद सावन की।
घन कोहरे का वितान
विहँसते दीप का खेला
दिग्भ्रान्त तिमिर में
स्मरण स्मित पल की।
गुनगुनी धूप का आँचल
अलकों से लिपटा बादल
चंचल समीर बयार में
ज्यों स्पंद आलिंद की।
डॉ रीमा सिन्हा
स्वरचित
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