कैसा जग का रिश्ता नाता ,

कैसा जग का रिश्ता नाता ,

कैसी जग की यारी ।
रोज टुटते जुड़ते देख कर ,
दिल पर पड़ता भारी ।
चिकनी चुपड़ी बात बोलकर ,
आपस में सब जुड़ते ।
मतलब पुरा हो जाने पर ,
शीघ्र मुख हैं मुड़ते।
पाना तो सबने सिखा है ,
निभाना मंत्र भुलाया ।
इस स्वार्थी सिद्ध मंत्र को ,
कोई समझ नहीं पाया ।
सारा रिश्ता उलझ गया है ,
इसी स्वार्थ के बंधन में ।
कैसे निकलोगे इस व्यूह से ,
सोचो मानव अपने मन में ।
जय प्रकाश कुंअर

हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ