हम अकेले ही चले थे
रमाकान्त त्रिपाठी 'रमन'
हम अकेले ही चले थे हम अकेले ही चलेंगे।टिमटिमाते दीप जैसे हम अँधेरे में जलेंगे।
कैलाश की शुभभस्म को गात पर अपने मलेंगे।
बर्फ के ठन्डे हिमालय ताप से कितना गलेंगे?
हम तो एक बहती नदी दूर है जिसका किनारा,
अनवरत बहते रहे तो सौम्य सागर से मिलेंगे।
पुण्य तो मेरे फलेंगे।
हम अकेले ही चलेंगे।
घाट के हिस्से रहे हैं दीप माला आरती स्वर।
हम समेटे फिर रहे हैं धूल पानी और कंकर।
क्यों बनाते फिर रहे हो सीढ़ियां धार छूने को,
मृत्यु पाएगी नदी ये एकदिन प्यासी तड़फकर।
घाट बिल्कुल ना हिलेंगे।
हम अकेले ही चलेंगे।
है नहीं कोई सहारा कौन अपना कौन प्यारा?
जो किनारे पर रहे हैं एक दिन देंगे किनारा।
दूसरा जलस्रोत कोई ढूँढ लेंगे वो भी 'रमन',
भूल जाएँगे नदी का एक दिन उपकार सारा।
एक दिन वो भी ढलेंगे।
हम अकेले ही चलेंगे।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com