मगही बोलS !
चितरंजन चैनपुरादोसर के पिछलग्गू बनके अनकर दर पर डोलS ह !
काहे अप्पन मातृभाषा मगही में न बोलS ह !
पता न कि कब करिया बादर छँटतो घोर निराशा के !
का जाने कब होयत उजाला उगतो सूरज आशा के !
माय बेंच के मउसी किनबS तो ऊ प्यार कहाँ पयबS !
होयतो न कुछ हासिल सिहकल लिलकल खाली रह जयबS ||
सबके अमृत देके आज जहर घरबे में घोलS ह l
काहे अप्पन मातृभाषा मगही में न बोलS ह !
पूछ न होयतो बाहर में जो छोड़ के अप्पन घर जयबS !
शान मान सब गिरवी रख के स्वयं उठल्लु बन जयबS ||
जेकरा अप्पन मातृभूमि अउ भाषा के अभिमान न हे |
पूँछहीन पशु के समान ऊ सचमुच ही इंसान न हे ll
अनकर राह उजाला करके अपने घर के झोलS ह !
काहे अप्पन मातृभाषा मगही में न बोलS ह !
बौद्ध जैन आउ सिक्ख सनातन पनपल एक जगहिये में l
विष्णु से बुद्धावतार तक सबके मूल मगहिये में ll
मगही के अब घोर उपेक्षा मगही ही सब कयले ह |
अप्पन के लतियाबित ह अउ अनकर गोड़बा धयले ह ||
अप्पन उफनित छोड़ दुधौंटा अनकर आलू छोलS हम ll
काहे अप्पन मातृभाषा मगही में न बोलS ह !
कट जयतो जहिना जड़ अप्पन फूल सभे कुम्हला जयतो !
भूल गेलS जो भाषा अप्पन दुनिया सभे भुला जयतो !
कनपातर न बनिहS वल्कि देखS अप्पन नैन से |
मगही के उत्थान करS अउ रहS सदा चितचैन से ||
अपना ला कंजूस बनल आउ दोसर ला दिल खोलS हS ll
काहे अप्पन मातृभाषा मगही में न बोलS ह !'चितरंजन चैनपुरा'
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