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बलिहारि गुरु आपनो

बलिहारि गुरु आपनो

 डॉ सच्चिदानंद प्रेमी
संप्रति बिहार में शिक्षा का समाचार सुर्खियों में है जिसके केंद्र में शिक्षक, शिक्षालय, शिक्षकों की कार्य धर्मिता केन्द्राभिसारी रूप से अवस्थित है ।शिक्षाक्रम, माध्यम, शिक्षार्थी गौण दिखते हैं ।विभाग अभी सक्रिय है और" शिक्षकों के काम करवा ही लेंगे" विषय पर दृढ़ संकल्पित है। इसके लिए ऐसे- ऐसे हथकंडे विभाग के अधिकारियों द्वारा अपनाए जा रहे हैं, मानो बहुत दिनों का वैर साधना हो। जनता इसमें आनंदित हो रही है ।कहीं कहीं तो जनता भी इस साधना यज्ञ में अपनी आहुति देने नहीं चूकती। शिक्षक बिचारा बना हुआ है ,परेशान है। शिक्षकों को यह मानने में गुरेज नहीं होना चाहिए कि इधर कुछ दिनों से कुछ शिक्षकों ने किताब कलम कॉपी से परहेज कर लिया था ।उन्हें आराम करने की आदत लग गई थी।महाबोधि शिक्षा परिषद् के एक शोध के अनुसार 30 प्रतिशत ऐसे शिक्षक थे जिन्हें सभी वर्गों के सभी विषयों की जानकारी नहीं थी।80प्रतिशत शिक्षक पाठ टीका नहीं लिखते थे।प्रायः शिक्षक अपने घर में पदस्थापित थे जिससे उनकी दवंगई के कारण स्थानीय पदाधिकारी उन्हें मधुमक्खी का खोता समझ कर उनसे दूर ही रहने में अपनी भलाई सनझते थे।उन्हें यह कार्य संस्कृति भारी पड़ रही है और यह एक मजबूत कारण है जो शिक्षकों को थकान पैदा कर रहा है।
विद्यालयों में शिक्षकों की कमी महसूस की जा रही थी। सुदूर ग्रामीण विद्यालय शिक्षक विहीन हो गए थे ।कई ऐसे उच्च विद्यालय थे जहाँ मात्र एक शिक्षक ही बचे थे ।कहीं कहीं तो विद्यालय के लिपिक को ही प्राचार्य या प्रधानाध्यापक के प्रभार में रहने का सौभाग्य मिला था। वैसे विद्यालयों में अचानक शिक्षकों की संख्या अकूत हो जाए तो यह आश्चर्य का विषय ही है ।प्राप्त ताजा रिपोर्ट के अनुसार चालिस प्रतिशत अधिक वैसे विद्यालयों में शिक्षकों की संख्या 30 से 35 हो गई है जहाँ छात्रों की संख्या 70 से 75 हैं ।एक प्रधान जी से मैंने पूछा -"आपके यहाँ बर्गानुसार कितने छात्र हैं और शिक्षकों की संख्या का क्या गणित है।" उन्होंने उत्तर चौंकाने वाला दिया।"
" हमारे यहाँ प्राथमिक वर्गों में 30 विद्यार्थी हैं जिन पर नौ शिक्षक हैं ,माध्यमिक स्तर में 28 विद्यार्थी हैं जिनके लिए 11शिक्षक हैं और उच्च माध्यमिक में कुल छह छात्र हैं जिन पर कुल 14 शिक्षक हैं। कुल मिलाकर 64 विद्यार्थियों पर 34 शिक्षक । बिद्यार्थियों की संख्या बढ़े भी कैसे ! प्रत्येक तीन किलोमीटर पर एक उत्क्रमिक उच्च माध्यमिक विद्यालय ।प्रायः लोग धनवल ,जनवल ,महाजन बल आदि आदि का प्रयोग कर शहर में ही रहना अपना अभीष्ट समझते हैं ।संप्रत्ति शिक्षा विभाग के उप मुख्य सचिव ने इस दिशा में क्रांतिकारी कदम उठाकर ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में शिक्षकों की पूर्ति सुनिश्चित करने का सफल प्रयास किया है । इस नियुक्ति में वाहुवल,धनवल ,जनवल कुछ काम नहीं आया । यहाँ तक कि महिला शिक्षिकाओं को भी उसी तरह उनके सिसकते छोटे बच्चों से बहुत दूर हृदयहीन मशीन(कम्प्यूटर)चलाकर पदस्थापित कर दिया गया जिस प्रकार पुरुष शिक्षकों को किया गया ।जिन शिक्षकों की नियुक्ति उनके घर से काफी दूर ग्रामीण क्षेत्र में हुई है जहां न तो चिकित्सा की सुविधा है, न आवागमन की और नहीं रहने के लिए कोई उपयुक्त मकान है। वहाँ की भौगोलिक स्थिति को जाने बिना सुदूर क्षेत्र के शिक्षक का प्रतिस्थापन शिक्षा के पक्ष में सकारात्मक नहीं कहा जा सकता ।चाहिए तो यह था कि क्षेत्र के शिक्षक अपने क्षेत्र में ही प्स्थापित किए जाते जो क्षेत्र का भूगोल समझते हों। जब शिक्षक चिंता ग्रस्त ,भयग्रस्त एवं भविष्य के लिए भययुक्त रहेंगे तो शिक्षकधर्मिता पवित्र नहीं होगी।
भारत की प्राचीन शिक्षा (गुरुकुल प्रणाली )अति विकसित रही हो जिसका अनुकरण एवं अनुसरण विदेश कर रहा हो वह प्रणाली राज्याश्रित हुआ करती थी ।राजाओं के यहाँ आचार्य का मान सम्मान सर्वाधिक था ।राजा उन्हें वेतन नहींनदेते थे लेकिन उनकी किसी तरह की आवश्यकता की पूर्ति राजा अपना धर्म समझते थे ।उन्हें सम्मान के साथ राज दरबार में बैठाया जाता था । आज इसका अनुसरण दूसरे देश कर रहे हैं।
जिन देशों की शिक्षा विकसित है या जो देश विकसित हैं वहाँ शिक्षकों के आदर का पैमाना बहुत ही बड़ा है ।वहाँ की सरकार का दिल दरिया है और दरियादिल्ली शिक्षकों के लिए उत्साह वर्धन का काम करती है ।अभी फिनलैंड की शिक्षा बहुत विकसित मानी जा रही है जिसकी चर्चा हर जगह होती है ,परंतु फिनलैंड के शिक्षकों की स्थिति देखी जाए तो उन्हें काम करने में स्वतंत्रता है ।एक सप्ताह में उनकी कार्यावधि 32 घंटे की होती है ,यानी 5 दिन 6 घंटे और एक दिन 2 घंटे। फिनलैंड में विद्यालय 8:15 बजे बैठता है और 2:45 तक चलता है ।उनका वेतन प्रतिमाह 3,52,354 रुपए भारतीय राशि में हुआ करता
है ।अगर 32 घंटे से अधिक काम उनसे लिया जाता है तो उस अवधि के वेतन की मांग वे कर सकते हैं ।विश्व के कुछ प्रसिद्ध देशों में शिक्षकों की कार्य अवधि और वेतन निम्नानुसार है -
जापान में कार्य करने की अवधि 40 घंटे की है जिसमें 3 घंटे वे अपनी तैयारी विद्यालय में ही करते हैं। यहाँ शिक्षक दो प्रकार के होते हैं- एक वैसे जो कमीशन से नियुक्त होकर सीधे आते हैं और दूसरे जो रोजगार समिति के द्वारा दिए जाते हैं ।जापान में गैर अनुभवी शिक्षकों का वेतन $30000 है तो सबसे कम है ।
चीन में यह कार्यावधि 50 से 54 घंटे प्रति सप्ताह है ।प्रतिदिन 9 घंटे की कार्यावधि के लिए वेतन $30000 यो होता है ।इंडियन कॉईस में 30,27000 के बराबर है। विश्वविद्यालय शिक्षकों का वेतन 3,54000 रु से अधिक होता है ।चीन में प्राइवेट ट्यूशन धड़ल्ले से चलता है ,परंतु उनका शुल्क सरकार द्वारा निर्धारित होता है । एक घंटा के लिए उन्हें 1,96,550 रु प्रति माह दिए जाते हैं।
कोरिया में शिक्षकों की कार्यावधि 40 घंटे की है ।वहाँ एक वर्ग में मात्र 15 विद्यार्थी होते हैं ।शिक्षकों का वेतन ₹141605 रुपए प्रतिमाह है।
रूस में शिक्षकों की कार्यावधि सबसे कम केवल 25 घंटे की है ।इसके लिए उन्हें मात्र 1,40,480 रुपए प्रति माह मिलते हैं ।
वैसे लक्जमबर्ग में शिक्षकों की कार्यावधि 32 घंटे प्रति सप्ताह है, लेकिन यहाँ शिक्षकों का सर्वाधिक सम्मान और सबसे अधिक वेतन देने वाला यह देश है। यहाँ पुरुष और महिला शिक्षकों का वेतन एक ही है। महिला एवं पुरुष शिक्षकों का वेतन 108000 डॉलर प्रतिप्रति वर्ष है जो इंडियन कॉइंस में 53 ,58, 285 रुपए से 61,64,479 रुपए प्रति वर्ष तक पहुंच जाता है ।
ऑस्ट्रिया में यह हवधि 24 घंटे प्रति सप्ताह है, परंतु वेतन विश्व के दूसरे स्थान पर है ।यहाँ पूरुष शिक्षकों को सम्मान के साथ 66000 और महिला शिक्षकों को 62000 डॉलर दिए जाते हैं। नीदरलैंड में एक हमारे मित्र हैं जिनसे बराबर बात होती है ।वे बताती हैं कि वहां प्राइमरी शिक्षकों को मात्र 15 घंटे 30 मिनट प्रति सप्ताह काम करने होते हैं इसके लिए उन्हें 63000 डॉलर मिलते हैं ।
यूनाइटेड स्टेट्स में कार्यावधि सबसे अधिक 53 घंटे प्रति सताह है ।इसके अनुपात में वेतन स्पर्धाात्मक कम है ।वहाँ प्राथमिक पुरुष शिक्षकों को 55000 और महिला शिक्षकों को 52000 डॉलर प्रतिवर्ष दिए जाते हैं जिसका मूल्य 4559093 रुपए के बराबर है ।हाँ! कुछ देश कम से कम वेतन देने वाले भी हैं ।कनाडा में 48,750 डॉलर प्रतिवर्ष ,थाईलैंड में यह अवधि 48 घंटे प्रति सप्ताह तथा वेतन मात्र 85000 रुपए के बराबर है अ
इस तरह शिक्षकों से सबसे अधिक काम लेने वाला देश चीन है जो 54 घंटे का कार्य प्रति सप्ताह लेता है ।परन्तु उसके अनुसार वहाँ वेतन आईएनआर में 3,27,000 प्रति माह है। इस तुलना में भारत में शिक्षकों का वेतन बहुत ही कम है। ऐसा तो नहीं कहा जा सकता कि यहाँ विश्व में सबसे कम वेतन है क्योंकि एक शिक्षक को पाकिस्तान के शिक्षकों के मुकाबले चार गुना अधिक वेतन मिलता है । परन्तु वहाँ कार्यावधि कम है
भारत में,उसमें भी बिहार नें विद्यालय 8:45 सुवह से 5:30 बजे शाम तक लगते हैं जो 9 घंटे के बराबर है ।यह अवधि सप्ताह मैं 56 घंटे की होती है जो वेतन के अनुपात में बहुत अधिक है ।यहाँ बिहार लोक सेवा आयोग के द्वारा नवनियुक्त शिक्षकों का वेतन 31,000 प्रति माह है जिनमें सभी तरह की भक्ताओं को साख करने पर भी ₹45,000 होता हैं ।ऐसा वेतन और कार्यावधि विश्व में कहीं नहीं देखने को मिलता ।
दूसरी बात यह है कि शिक्षकों को उसी चश्मे से नहीं देखा जा सकता है जिस चश्मे से राजकीय कर्मचारियों को देखा जाता है। शिक्षक राष्ट्रनिर्माता हैं ।उन्हें छोटे बच्चों के साथ उनके मनोविज्ञान के साथ काम करना होता है ।उनके अनुरूप आवासन- प्रवासन की सुविधा मिलनी चाहिए जहाँ वे अब अगले दिन की तैयारी कर उत्साह के साथ बर्ग में जा सकें।
वैसे यह सत्य है कि पहले चरण का काम तो पूरा कर लिया गया है ।परंतु सिर्फ शिक्षकों की प्रतिपूर्ति से अध्यापन सुदृढ़ नहीं हो सकता। शिक्षकों को प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए और उनके कार्य के अनुरूप वेतन भी। सच्चाई है कि यह एक ईमानदार कर्मठ दूरदर्शी दृढ़ संकल्पी पदाधिकारी का प्रयास और श्रम तभी रंग लाएगा जब उस ग्रामीण विद्यालय में ही उस क्षेत्र के नेता, अभिनेता, अधिकारी, व्यापारी, अध्यापक , संतजन ,श्रेष्ठजन ,महाजन सभी अपने पाल्यों को अपने क्षेत्राधीन स्थापित विद्यालय में ही प"ढबाएँगे । 
(लेखक डॉ सच्चिदानंद प्रेमी शिक्षाविद,साहित्यकार, समाजसेवी एवं दिव्य रश्मि पत्रिका के मार्गदर्शक है )
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