सादर सबको नमन
रातदिन जो सृजन हैं करते ,चाचा दादा मात बहन भ्रात ।
सबके जो भले करते सदा ,
देव देवी को नमन करे प्रात ।।
जन जन ही हैं सृजन कर्ता ,
सृजन का न किसी में अभाव ।
जन जन आए एक सृष्टि से ही ,
अलग अलग होते सबके भाव ।।
कोई सृजनकर्ता प्रेम के होते ,
जो अनेक को भी करता एक ।
कोई सृजनहार ऐसा भी होता ,
जो एक को भी करता अनेक ।।
कोई सृजनहार परिवार बनाता ,
कोई परिवार बिखरा देता है ।
अपने भी तब हो जाते पराए ,
जन जन के नेत्रों को विभेता है ।।
एक सृजनहार शिक्षित बनाते ,
एक सृजनहार रचते हैं संस्कार ।
एक सृजनहार जीवनमंत्र देकर ,
खोल देते फिर मोक्ष का द्वार ।।
एक सृजनहार वे भी बड़े होते ,
सृजित करते उपयोगी सामान ।
हर समस्या के समाधान करके ,
सबके ही पूरन करते अरमान ।।
नित्य हमें जो नई राह बहुत देते ,
सुबह दोपहर रात्रि और शाम ।
जन्मदिवस के शुभ अवसर पर ,
सबको सहृदय सादर प्रणाम ।।
सदा बरसता रहे मुझपे सबके ,
प्यार शुभकामना औ आशीष ।
मेरे लिए वही बहुमूल्य है होता ,
वही तो होता है मेरा बख्शीश ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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