आशाएँ बिकने लगी
डॉ रामकृष्ण मिश्रविज्ञापन के भाव।
अखवारों में मोटे अक्षर
चिल्लाते लगते ।
मिनट- मिनट पर सारे चैनल
बतियाते लगते।
कद्दावर के कदम में
बिछते मँहगे दाव।।
तोतों की चाँदी हुई
चमकीली कुछ और।
बौने देना चाहते हैं
कागज पर ठौर।।
सेवादार बिचौलिओं में
अजीव टकराव।।
जड़ीदार पगड़ी हुई
रेवड़ियों का स्वाद।
ऊपर से माथे चढ़ा
उलझा हुआ विवाद।।
दस्तावेजों में कहीं
ढूँढ रहे भटकाव।।
अखवारों में मोटे अक्षर
चिल्लाते लगते ।
मिनट- मिनट पर सारे चैनल
बतियाते लगते।
कद्दावर के कदम में
बिछते मँहगे दाव।।
तोतों की चाँदी हुई
चमकीली कुछ और।
बौने देना चाहते हैं
कागज पर ठौर।।
सेवादार बिचौलिओं में
अजीव टकराव।।
जड़ीदार पगड़ी हुई
रेवड़ियों का स्वाद।
ऊपर से माथे चढ़ा
उलझा हुआ विवाद।।
दस्तावेजों में कहीं
ढूँढ रहे भटकाव।।
रामकृष्ण
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