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रंगो का है खेल

रंगो का है खेल

मैं राही चंचल हूँ
चलना मेरा काम।
जीना मरना सीख लिया
देखकर सबका हाल।
न कहता न सुनता
बस देखता ही रहता।
और सपनो की दुनिया
खुली आँखो से देखता।।


मंजिल का है नहीं पता
फिर भी चले जा रहा हूँ।
गीत मिलन के मानो
गाये जा रहा हूँ।
सुख दुख की परिभाषा
समझे जा रहा हूँ।
बिना लक्ष्य के मंजिल
पाये जा रहा हूँ।।


मैं हूँ एक लेखक कवि
लिखना मेरा काम।
जो कुछ देखा हमने
लिखा उसे कलम से।
है कितनी रंगीन ये दुनिया
रंग बिरंग इसके लोग।
हर रंग का है मतलब
और रंगों का है खेल।।


जय जिनेंद्र

संजय जैन " बीना" मुंबई
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