कला कलाकार बिक रहे है
दिन रात उजालों में रहने वालेक्या जानेगें अंधेरा क्या होता है।
बस खनती पयाल की झंकार
और गीतों की पुकार जानते है।
चंद पैसों की खातिर ही सही
ये कलाकार खुशीयां बेचते है।
जो अमीरजादो की शाम को
हर दिन रंगीन बना देते है।
उन्हें आनन्द की अनभूति
और उनकी थकान मिटाते है।
और फिर से अंधेरे में ये
लौट जाया करते है।।
कला बहुत अनमोल होती है
जो अब बाजारों में बिक रही है।
कला के पुजारी भी आज कल
पेट की भूख के लिए बिक रहे है।
बड़े बड़े होटलों और क्लबो में
कलाकारों की कला बिक रही है।
जिसके चलते करोड़ों का व्यापार
देश में फल फूल रहा है।
पर कलाकार की जिंदगी तो
उस वक्त तक ही है जब तक।
आवाज में कसक और पायल में
खनक की गूँज बाकी है।।
दुनिया के बाजारों में
हर चीज बिक रही है।
खाने पीने की चीजों की तरह
इंसानियत भी बिक रही है।
बस पारखी और जानकार
चीजों का होना चाहिए।
जो अपने फायदा नुकसान को
इन सबके खरीदने से जान सके।
हमें तो सिर्फ दौलत से मतलब है
इंसानो के मोल से क्या लेना देना।
अंधेरो में जीने मरने वाले लोग
क्या जाने दौलत के नशा को।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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