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यह कैसी महँगाई

यह कैसी महँगाई

पिज़्ज़ा सस्ता सब्ज़ी महँगी हो गई,
घर की रोटी भूखी घर में सो गई।
होटल जाकर सब कुछ सस्ता लगता,
महँगाई की मार घर पर हो गई।


ब्रान्डिड कपड़े से बाज़ार भरा है,
ब्रान्डिड जूतों से घर बाहर भरा है।
नई गाड़ियाँ सड़कों पर दौड़ लगाती,
महँगा घर में सब सामान भरा है।


हर हाथ में महँगे मँहगे मोबाइल हैं,
उनमें डाटा भरा अनलिमिटेड है।
बार बार मोबाइल बदलने का फ़ैशन,
देश विदेश के टूर अनलिमिटेड है।


नये नये शो रूम खुल रहे गली गाँव में,
सिमट रहे व्यापारी छोटे गली गाँव में।
आमदनी कम पड़ती दिखावे के चक्कर,
रहना नहीं चाहते अब कोई गली गाँव में।


कुछ कहते मँहगाई से कमर टूट रही,
पक्के घर जिनके, झोपड़ी छूट रही।
गरीब बेचारे अब पिज़्ज़ा बर्गर खाते,
विरोध करें, जिनकी आदत लूट रही।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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