क्या हुआ है हवा को
डॉ रामकृष्ण मिश्रक्यों अनकहल सी हो गयी
चाल अल्हड़पन भरी
कुछ तेज हलचल हो गयी ।।
कुछ दिनों पहले नहीं था
गर्मजोशी का मिजाज
तनिक हलके स्पर्श से
कंपन किया करता सुराज।।
सुस्त अनभल सी अचानक
खुूब चंचल हो गयी।।
आम की मधु गंध बस्ती
बाँसुरी कृष्णा जगी।
अमलतासी झूमरों में
प्रीति की आभा जगी।।
कुंज की छाया सिमटती
और दुर्बल हो गयी।।
रेशमी तारुण्य अवचेतन
सुवासित हो रहा,
ग्राम्य लज्या की प्रतिश्रुति में
विकल मन खो रहा।।
भावनाओं की बधूटी सहज पिंगल हो गयी।।
चाल अल्हड़पन भरी
कुछ तेज हलचल हो गयी ।।
कुछ दिनों पहले नहीं था
गर्मजोशी का मिजाज
तनिक हलके स्पर्श से
कंपन किया करता सुराज।।
सुस्त अनभल सी अचानक
खुूब चंचल हो गयी।।
आम की मधु गंध बस्ती
बाँसुरी कृष्णा जगी।
अमलतासी झूमरों में
प्रीति की आभा जगी।।
कुंज की छाया सिमटती
और दुर्बल हो गयी।।
रेशमी तारुण्य अवचेतन
सुवासित हो रहा,
ग्राम्य लज्या की प्रतिश्रुति में
विकल मन खो रहा।।
भावनाओं की बधूटी सहज पिंगल हो गयी।।
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