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"जिंदगी की करुणा"

"जिंदगी की करुणा"

कोसते रहते हैं अपनी जिंदगी को उम्रभर,
भीड़ में हंसते हैं तन्हाई में रोया करते हैं।

ख्वाहिशों का बोझ है दिल पर इतना भारी
कि सपनों का वो रंग ढलने लगा है धीरे-धीरे

हर पल मिलती नई चुनौती जीवन की राह में
हर कदम पर ठोकरें खाते हैं हम अनजाने

खुद को ही ढूंढते रहते हैं हम इस भीड़ में
पर मिलता है बस अकेलापन और सन्नाटा

ख्वाहिशों का बोझ है कंधों पर,
मंजिल दूर है और राहें हैं पथरीली।

हर पल की चिंता, हर पल का डर,
जीना है मुश्किल, मरना भी डर।

दुनियादारी के चक्कर में फंसे हुए,
अपनों को भूल गए हैं, खुद को भूल गए हैं।

रिश्ते टूट रहे हैं, विश्वास उठ रहा है,
हर तरफ नफरत, हर तरफ जंग है।

कहां है वो खुशी, वो मुस्कान,
जो बचपन में हुआ करती थी।

कहां है वो सपने, वो उम्मीदें,
जो जवानी में हुआ करती थीं।

अब तो बस है थकान, बस है निराशा,
बस है एक खालीपन, बस है अकेलापन।

लेकिन हार नहीं माननी है,
लड़ना है, जीना है, मुस्कुराना है।

क्योंकि जिंदगी एक सफर है,
और हर सफर का अंत होता है।

तो क्यों न इस सफर का आनंद लिया जाए,
क्यों न जिंदगी को जी भरकर जिया जाए।

. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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