आओ प्रिये एक गीत लिखें
अरविन्द अकेलाआओ प्रिये एक गीत लिखें
आज भारतीय नारी पर
रूप-यौवन के क्या है कहने
क्या कहने उस कल्याणकारी पर
बहुत हीं सुन्दर,सलोनी दिखती
वह भारतीय साड़ी पर।
आओ प्रिये एक गीत...l
बिन्दिया,टीका,नथिया,कुमकुम से
रूप की शोभा बढ़ती है
पैरों में पायल से उसके
मनमोहक धुन सी बजती है
लगाती जब आँखों में काजल
हो जाती दिवानी दुनियाँ उस नयनकटारी पर।
आओ प्रिये एक गीत...l
बढ़ जाती शोभा उसके मंगलसूत्र से
लिपस्टिक भी कुछ कहती है
हाथों की खनकती चूडिय़ां
कुछ अलग कहानी गढ़ती है
हम उसके रूप-हुस्न के कायल
कायल उसकी हर किरदारी पर।
आओ प्रिये एक गीत...l
करती जब वह सोलह शृंगार
अप्सरा फीकी पड़ जाती है
लगाती जब गजरा बालों में
ये धरा महक सी जाती है
हम तो हैं दिवाने उसके
उसकी प्रेम बफादारी पर।
आओ प्रिये एक गीत...l
जब-जब वह संजती-संवरती
मनमोहिनी सी वह लगती है
कभी अनुसुइया,सरस्वती,सीता
कभी लक्ष्मी,दुर्गा लगती है
हमसब उसके रूप-गुण पर मोहित
मोहित उसकी हर अदाकारी पर।
आओ प्रिये एक गीत...l
ममता की देवी लगती वह
दया,करूणा से भरी हुई
कभी अन्नपूर्णा,कल्याणी तो
कभी ज्वाला सी लगती है
देवता भी मोहित हैं उनपर
उसकी हर जिम्मेवारी पर।
आओ प्रिये एक गीत...l
अरविन्द अकेला,
पूर्वी रामकृष्ण नगर,पटना-27
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