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कब विचारों का आवागमन रुका है,

कब विचारों का आवागमन रुका है,

कब सृष्टि में सृजन का क्रम रुका है।
सैनिकों के लहू का जोश कब शीतल,
कब सृजनकर्ता ब्रह्मा का कर्म रुका है।

धूप छाँव ऋतुओं का आवागमन चलता रहेगा,
मन उदास कुंठित प्रसन्न सब यूँ चलता रहेगा।
ख्वाहिशें कब किसकी यहाँ सब पूरी हो सकी,
जीवन मरण ख़ुशी अवसाद सब चलता रहेगा।

कब लगे प्रतिबंध विचारों पर किसी के,
व्यक्त कुछ ने किये, मन में रहे किसी के।
अंतरिक्ष के रहस्य, सूरज में शीतलता है,
भाव कवि के कब समझ आये किसी के।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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