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"हर बात के लफ्ज़ नहीं होते हैं"

"हर बात के लफ्ज़ नहीं होते हैं"

हर बात के लफ्ज़ नहीं होते हैं,
कुछ एहसास खामोशी के भी होते हैं।

आँखों में ही उतर जाते हैं कुछ,
दिल में भी उतर जाते हैं कुछ।

लफ्ज़ों की ज़रूरत नहीं होती,
जब एहसास ही सब बोल जाते हैं।

प्यार का इज़हार भी होता है,
खामोशी में भी इशारों से।

आँखें ही बयां कर देती हैं,
दिल में जो छुपा होता है।

खामोशी भी एक भाषा है,
जो बोलती है बहुत कुछ।

समझने वालों को समझ आ जाता है,
खामोशी में छुपा प्यार और अहसास।

. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित 
 पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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