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देखो; जनते!मत दुत्कारो

देखो; जनते!मत दुत्कारो
श्री मार्कण्डेय शारदेय

तुम हो मेरी प्यारी गैया,
मैं सवार हूँ ,तुम हो नैया,
तुम गोपी मैं कृष्ण-कन्हैया,
यह सम्बन्ध तोड़ दोगी, मर जाऊँगा स्वीकारो।
देखो;जनते! मत दुत्कारो।।
तुमको कष्ट हुआ है माना,
इसीलिए है बस; यह ताना,
तुमने सीखा है अपनाना,
फिर गलती वैसी न करूंँगा, सागर पार उतारो।
देखो; जनते! मत दुत्कारो ॥
भर दो मेरी खाली झोली ,
मनती रहे दिवाली-होली,
टोली-पर-टोली आए, पर उसकी बात बिसारो ।
देखो; जनते! मत दुत्कारो ॥
एकमात्र मैं सच्चा नेता,
नवप्रभात का प्राण-प्रणेता,
जाति-धर्म उत्थान –चहेता,
मुझे बनाकर पुनः विजेता, संचित स्वप्न सँवारो ।
देखो; जनते! मत दुत्कारो॥
पूर्ण करूंँगा मैं ही आशा ,
दिया करूंँगा कभी न झांँसा,
फेंको फिर वैसे ही पासा ,
दुश्मन के मुंँह में कालिख हो ,स्नेहिल नयन निहारो ॥
 देखो; जनते! मत दुत्कारो ॥
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