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राष्ट्र को दर्पण दिखाने वाली संस्था-विनोबा का आचार्यकुल

राष्ट्र को दर्पण दिखाने वाली संस्था-विनोबा का आचार्यकुल

डॉ सच्चिदानन्द प्रेमी
आचार्यकुल आचार्य विनोबा भावे की परिष्कृत कल्पना है जो भारत को विश्व गुरु बनाने की क्षमता रखता है। हमारी भारतीय संस्कृति नहीं तो नागरिक संस्कृति है नहीं ग्रामीण संस्कृति है, यह आरण्यक संस्कृति है ।यहाँ महर्षि ज्ञानी हुआ करते थे जो अरण्य में रहकर यानी संसार से अलिप्त रहकर विरक्त भावना से चिंतन करते थे और प्राप्त ज्ञान का प्रचार घर-घर जाकर लोगों में करते थे ।
आचार शब्द में चर् धातु है जिसका अर्थ आचरण करना, विचरण करना ,विचार करना ,संचार करना, प्रचार करना होता है । आगे- पीछे ऊपर -नीचे चारों ओर चर् धातु भरा हुआ है ।कुल शब्द परिवार वाचक है । हम सभी आचार्यों का एक ही परिवार है ,एक ही उदेश्य है -ज्ञान की उपासना करना, चित्- शुद्धि के लिए प्रयत्न करना, विद्यार्थियों के प्रति वात्सल्य भावना रखकर उसके विकास के लिए सतत् प्रयत्न करते रहना, सारे समाज के सामने जो समस्याएँ आती हैं उन पर तटस्थ भाव से चिंतन करके सर्बसम्मत निर्णय लेना और समाज के सामने उसे रखना, समाज को इस प्रकार से मार्गदर्शन देते रहना इत्यादि । हम सब जो करने जा रहे हैं वह परिवार की स्थापना का ही काम है। इसीलिए बाबा ने इस संस्था का नाम आचार्यकुल रखा था ।आचार्यकुल एक सुंदर शब्द है ।आचार्यकुल- आचार्यों का कुल. या आचार्यकुल- कुल आचार्यों का समुदाय, आचार्यकुल- ठंडे दिमाग से सोचने वाले विद्वानों का संगठन। आचार्य शब्द सामान्य नहीं है आचार्य शब्द शंकर में लगकर शंकराचार्य, रामानुजमें लगकर रामानुजाचार्य बनाने के लिए प्रयोग में आया है ।इसके अलावा शिक्षक जो अपने शिक्षण से समाज को प्रभावित करते हैं उनके लिए भी यह शब्द आया है- मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव- हमारे उपनिषद् कहते हैं ।इसीलिए बाबा ने आचार्यकुल की स्थापना शिक्षकों और विद्वानों से की थी, परंतु सुप्रिम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री गजेंद्र गडकर के आग्रह पर बाबा ने विद्वान, साहित्यिक, न्यायाधीश आदि को भी पक्षमुक्त समझकर इसमें शामिल किया था । जो तटस्थ बुद्धि रखते हैं जो समस्त सृष्टि के हित चिंतन करते हैं, वैसे चरित्रवान विद्वान अध्ययनशील जो भी हैं वे सभी आचार्यकुल के सदस्य हो सकते है ।आचार्यों के परिवार का मतलब होता है -न छोटा न बड़ा ,सब की समानता- सबकी सहभागिता। जितने आचार्य हैं सभी समान रूप से आदरणीय हैं, सबका सम्मिलित प्रयत्न होता है तभी परिवार का काम आगे बढ़ता है।
बाबा ने गुरु नानक देव की व्याख्या के आधार पर आचार्यों का स्वभाव निर्भय, निर्बैर रखा था ,फिर उसमें निष्पक्ष शब्द भी जोड़ दिया गया ।यानी जो कभी अशांत नहीं होते हैं, जिनके मन में कभी झूठ नहीं होता है, जिनके मन में द्वेष नहीं है और सभी तरह के पक्षों से मुक्त हैं वहीं आचार्यकुल के सदस्य हो सकते हैं ।आचार विचार प्रचार संचार जो करता है वह आचार्य, निर्भय निर्बैर निष्पक्ष रहते हुए जो सबको आचरण सिखाता है उसका नाम आचार्य है ।आचार्य समाज का सबसे श्रेष्ठ पुरुष होता है। श्रेष्ठ पुरुष जो आचरण करते हैं उसका अनुसरण सभी लोग करते हैं ।
आज दिन-ब-दिन सज्जन शक्ति विघटित होती जा रही है, सज्जनों में उदासीनता एवं निष्क्रियता भरती जा रही है ।इसलिए आज आचार्य -कुल की आवश्यकता वहुविध प्रासंगिक है ।परन्तु दुर्जन शक्ति के आगे, आसुरी संपत्ति के आगे सज्जन शक्ति कमजोर होती दिखती है ।इसके कारण कई हो सकते हैं। खैर,कारण जो हो लेकिन यह संगठन धीरे-धीरे कमजोर पड़ता दिख रहा है ,यह दुर्भाग्य की बात है और आने वाले समय के लिए शुभ सूचक नहीं माना जा सकता ।महाभारत के पहले बड़े-बड़े आचार्यों ने बोलना बंद कर दिया था ।उनके सलाह नहीं माने जाते थे, इसलिए उन्होने बोलना भी बंद कर दिया था। उसका परिणाम महाभारत हुआ । आज समाज में संकट है ,समाज में हाहाकार है ,वह इसलिए कि आचार्य चुप हैं ।आचार्यों को संगठित होकर विश्व मानुष बनने की ओर अग्रसर होना चाहिए ।हमें विश्वयुद्ध की विरोधी राष्ट्र सेवा करनी चाहिए । बाबा ने राष्ट्र से आगे बढ़कर कहा -अब जय हिन्द नहीं -जय जगत। यहाँ बाबा गांधी जी से कुछ आगे बढ़े नजर आते हैं ।
आचार्यों की शक्ति राजा महाराजा या सम्राटों से भिन्न है। यह तारक है, प्रेरक है और पूरक है ।बाबा मार्क्स और टाल्सटाय दो ही को विचारक मानते थे। दोनों प्रेरक थे, लेकिन टाल्सटाय का विचार प्रेरक होने के साथ-साथ तारक भी है जबकि मार्क्स का सिद्धांत तारक साबित नहीं हुआ । आचार्यों की शक्ति तब तक नहीं होगी जब तक राजनीति से अपने को मुक्त नहीं रखेंगे ,उसके ऊपर नहीं उठेंगे ।हमको तो मन से ऊपर उठना चाहिए ।आचार्यों का काम है-आन ,मान, सम्मान से ऊपर उठना ।बाकी के जो लोग होते हैं उनका अपना- अपना क्षेत्र होता है, उनका अपना- अपना मन बन जाता है ।उसी मन से वे चिंतन करते हैं, इसलिए वे मार्गदर्शन नहीं दे सकते ।लेकिन विचारों का चिंतन होगा तो मार्गदर्शन दे सकते हैं और बुद्धि से निर्णय भी दे सकते हैं ।आचार्यों का समूह है वह संसार में रहकर भी अपने को मन से ऊपर रखेगा। इसलिए कहाँ क्या गलती हो रही है- उसके बारे में निर्णायक अभिमत दे सकेगा ।
इसलिए आचार्यकुल की संकल्पना मुख्यतः शिक्षक केन्द्रित है। क्योंकि शिक्षक समाज एवं शिक्षार्थी से सीधे जुड़े हुए हैं ।इनके अतिरिक्त उत्तम आचरण करने वाले निष्पक्ष कीर्तनकार,प्रवचनकार,पत्रकार,कलाकार,व्यापारी ,वैज्ञानिक और लोक शिक्षक सबों को मिलाकर एक संगठन खड़ा करने का निर्णय बाबा ने लिया जिसका नाम आचार्यकुल है। इसीलिए बाबा ने ऐसे लोगों का संगठन खड़ा करने का निर्णय लिया था जो राजनीति से ऊपर हैं ,सत्ता से दूर रहना चाहते हैं ।
बाबा ने पहले गांव- गांव में शिक्षक जो काम कर रहे हैं उन्हें आचार्य कुल में शामिल करने की बात कही ।उनकी कल्पना में 300 आचार्य मिल जाते हैं तो संपूर्ण भारत में शांति -सद्भाव की स्थापना हो सकती है ।आचार्यकुल की स्थापना बाबा ने स्वतः नहीं की ,यह उनकी कई महीनों की आत्म- शुद्धि का परिणाम था ।इसपर संपूर्ण राष्ट्र के शिक्षा मंत्रियों, कुछ मुख्यमंत्रियों और कुलपतियों ने अपने विचार की मुहर लगाई थी ।इसकी स्थापना पूसा रोड में ही हो गई थी, परंतु इसकी घोषणा कहॉल मुनि के आश्रम में 8 मार्च 1968 को कहल गांव में हुई ।
आज सम्पूर्ण भारत में 6800 खण्ड-प्रखंड हैं ।अगर एक प्रखंड से एक व्यक्ति को भी चुना जाता तो आचार्य कुल के 6800 सदस्य एक बार राष्ट्रीय सम्मेलन में नजर आते। परंतु ऐसा नहीं हुआ। इस पर गंभीर चिंतन नहीं होने से तरह -तरह की भ्रांतियाँ व्याप्त हो रही हैं। सदस्यता बढ़ाने के लिए उनके कार्यक्रमों से जन-जन को, लोकतंत्र की लोक- शक्ति को जागृत करना होगा ,तभी आचार्यकुल की शक्ति राष्ट्र को या संपूर्ण जगत को प्राप्त हो सकेगी ।
बाबा के विचार हम मानें तो-
1-गाँव -गाँव में शिक्षक जहाँ पाँच की संख्या में एकत्र हो जाँएं वहाँ आचार्यकुल की इकाई खड़ी हो जाएगी।
2- जहाँ इस तरह की पाँच इकाइयाँ होंगी वहाँ प्रखण्ड आचार्यकुल होगा ।
3- इस तरह जहाँ तीन या तीन से अधिक प्रखण्ड इकाइयाँ होंगी वहाँ ज़िला आचार्यकुल होगा।
4-जिले के संगठित इकाई राज्य में राज्य -संगठन खड़ा करेँगे।
5-राज्यों के संगठित आचार्य राष्ट्रीय आचार्यकुल बनाएँगे।
इस तरह संगठित राष्ट्रीय आचार्यकुल राष्ट्र की सामयिक समस्याओं पर चर्चा कर अभिमत बनाएँगे और इस अभिमत से सरकार को अवगत कराएँगे।यह अभिमत सरकार के लिए अनुशासन भी होगा और मार्गदर्शन भी ।अगर सरकार अनुशासन नहीं मानेगी तो सत्याग्रह की नौबत आ सकती है।लेकिन बाबा को विश्वास है कि कोई भी समझदार सरकार ऐसी नौबत नही आने देगी।
जो कुछ भी कहा वह मेरा नहीं है,विनोबा जी का है। इसलिए यह सर्वमान्य होना चाहिए।सभी आचार्यों को एक मंच पर आकर निष्पक्ष निर्वैर और निर्भय होकर चिन्तन करना चाहिए ।पद,प्रतिष्ठा,प्रण खोकर भी अतीत की शक्ति प्राप्त कर लें तो बाबा की आत्मा को शांति मिल सकेगी ।
आचार्यकुल की स्थापना दिवस पर सबसे मेरा विनम्र निवेदन है कि आप भी आचार्यकुल में अपना योगदान देकर राष्ट्रदेव के पावन चरणों में अपनी सेवा समर्पित करें।
डॉ सच्चिदानन्द प्रेमीसंरक्षक ,आचार्यकुल,वर्धा।
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