मौत का रंग स्याह क्यूं
लेखक मनोज मिश्र इंडियन बैंक के अधिकारी है|
मौत का रंग स्याह क्यूं
छोड़कर चिंता फिकरहोकर मुक्त बंधनों से इतर
उन्मुक्त चला यायावर
अपनी अनंत यात्रा पर
फिर मौत का रंग स्याह क्यूं
नव प्रभात नव अरुणोदय
पाकर चला जो मार्ग पर
पुष्प वल्लरी समेटने बिखेरने
आह्लाद को अपने संग कर
फिर मौत का रंग स्याह क्यूं
जो छूटे यहीं इस लोक पर
उनको निज बंधन से मुक्त कर
रंग भर सकें वे फिर से सुर्ख
जी सकें जीवन अंदेशों को कर परे
फिर मौत का रंग स्याह क्यूं
उत्सव ही है गमनागमन का
सृष्टि का काल चक्र चल रहा
कुछ छूटेंगे कुछ जुड़ेंगे
यही सिलसिला अनवरत रहा
फिर मृत्यु का रंग स्याह क्यूं
चलो इस रंग से बेजार हो कुछ
अलग रंग से श्रृंगार करें
दुख शोक तज कर यहीं धरा पर
अंबर पर कांतिमय रंग भरें
तब न होगा मृत्यु का रंग स्याह
होगा वह उत्सव रंग का, रास का
उत्साह का और उमंग का
फिर न होगा ये अवसर स्याह का
फिर होगा न ये अवसर स्याह का-
मनोज कुमार मिश्र
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