जय बाबा ब्रह्मेश्वरनाथ!

जय बाबा ब्रह्मेश्वरनाथ!

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श्री  मार्कण्डेय शारदेय
'बिहार-दर्पण' (द्वितीय संस्करण-1883) के लेखक रामदीन सिंह ने मुगल बादशाह शाहजहांँ के समकालीन भोजपुर के राजा नारायण मल्ल के साथ ब्रह्मपुर (बक्सर) के सुप्रसिद्ध ब्रह्मेश्वरनाथ मन्दिर की एक घटना का उल्लेख किया है, जो मेरी पुस्तक 'डुमराँवनामा' में भी उल्लिखित है।मेरी पुस्तक का अंश इस प्रकार है--
रामदीन सिंह ने नारायण मल्ल की खूबियाँ खूब बखानी हैं।तदनुसार वह सच्चे राजा थे।वह वीर, रणधीर तो थे ही वह नीतिमान, धर्मपालक, प्रजारक्षक, विद्वानों के अनुगत भी थे।उन्होंने ब्राह्मणों को अनेक गाँव दान किए।जगह-जगह कुआँ, बावली, सराय, पाठशाला, अखाड़े, नदियों पर पुल, जंगलों में सड़कें चिकित्सालय-जैसे राजानुकूल कार्य किए।
एक विशेष घटना से राजा नारायण मल्ल की सूझ-बूझ, राजनीति, कूटनीति और धर्मरक्षा-जैसे राजगुणों का उद्घाटन हो जाता है।सन्देशवाह ने सूचना दी कि नौ सौ आतंकी आकर आपके देश में उपद्रव मचा रहे हैं।प्रजा पर अत्याचार करते ब्रह्मपुर का शिवमन्दिर ढाहने चले थे।पहले राजा ने सामनीति से काम लिया, पर परिणाम में जो दूत गया था, उसका दाहिना हाथ काट लिया गया था और पत्रोत्तर में लिखा था कि मैं अपनी सेना को उपद्रव करने से नहीं रोकूँगा।कल मैं देवराड़ (जगदीशपुर से सवा कोस पश्चिम एक गाँव) के चतुर्भुजी मन्दिर को ढहवाकर परसों ब्रह्मपुर में शिव की मूर्ति को तोड़कर तुम्हारी राजधानी पर चढ़ूँगा।
तब नारायण मल्ल ने शठे शाठ्यं समाचरेत् वाली नीति अपनाई।उन्होंने पहले अपने लोगों को एकजुट किया।फिर अपने सैनिकों के लिए मुसलमानी कपड़े सिलवाए।फिर आतंकियों के मुखिया के पास छद्म गाजीपुर के अख्तर हुसैन के नाम से पत्र लिखा कि काफिर नारायण मल्ल को मारने और ब्रह्मेश्वरनाथ का मन्दिर तोड़ने के लिए आप चढ़े हैं इसलिये आपकी सहायता को 500 मुसलमानों के साथ हाजिर आता हूँ मैं गाजीपुर से चला हूँ।
पत्र पढ़कर आतंकियों का सरदार प्रसन्न हुआ।फिर जवाब में लिखा कि आप ब्रह्मपुर में ठहरिये।मैं तीसरे पहर मिलूँगा और काफिरों को पूरी सजा दूँगा।राजा पत्र पढ़कर ब्रह्मेश्वरनाथ को स्मरण-नमन कर उक्त समय पर छद्मवेषी अपने लोगों के साथ पहुँचे और बम् बम् कर मारना शुरू किया।साँझ होते-होते आतंकियों का सफाया कर राजा ने धूम-धाम से ब्रह्मेश्वरनाथ का पूजन किया फिर अपनी राजधानी आए।
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