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बिसात

बिसात

अच्छा लगता है
अक्सर
बिसात बिछाना
निर्जीव मोहरों को
मनचाहे पात्रों में ढालना
और
खेलते जाना।


हमने भी बिछायी
बिसात
कुछ काल्पनिक पात्रों की
अपने मन आँगन में
और बैठ गये खेलने
दो खिलाडिय़ों
दाँयें व बाँयें हाथ के साथ
और
बना लिया
मन को
एक मात्र दर्शक
अपनी बिसात का।


मन
जो होता है
चलायमान
और चाहता है
परिणाम
केवल अपने ही मुताबिक।
और मोहरे
जिनकी खुद की
नही होती
कोई बिसात
बेचारे
निर्जीव बेजान
थिरकते- फुदकते, विचरते
हवा में लटके
कभी दाँयें
तो कभी
बाँयें हाथ में
प्रतीक्षा को आतुर
आगे बढने
अथवा
मरने मारने को
बिना किसी उद्देश्य
चाहत या लक्ष्य के
केवल
खिलाडिय़ों की इच्छा
या
मन की तृष्णा
सन्तुष्टि के लिये,
बिछायी गयी बिसात पर।


अक्सर
ऐसा भी होता है
बाँया खिलाडी
चल जाता है
कुछ ऐसी चाल
जो बन जाती है
खतरा
दाँयें खिलाडी के
हाथी- घोडे
या ऊँट के लिये
अथवा
दे जाता है शै
सीधे राजा को ही।
तब मन होता है
चलायमान
और
बदल देता है
मोहरों के मुकाम
सन्तुष्टि के लिये
दाँयें खिलाडी की।


जब मान लिया
और
ठान भी लिया
मन नें
कि खिलाडी
जो है दाँयीं तरफ
राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय विजेता
नही हार सकता
कभी
स्थानीय प्यादों से
तब
बदलने ही पडते हैं
खेल के नियम
कभी कभी
कहीं भी
सुविधानुसार
दाँयें के हित में
देते हुये दुहायी
ऐसे अंतरराष्ट्रीय नियमों की
जिनसे परिचित नही है
बाँयां खिलाडी।
और
अन्ततः
घोषित कर दिया जाता है
दाँयें खिलाडी को
विजेता,
निष्पक्ष
एक मात्र दर्शक
मन के द्वारा।
इतिहास
लिखा जाता है
बिसात का
खिलाडियों का
खेल के नियमों का
और
दर्शकों का
खिलाडियों की योग्यता,
संस्कार
और संस्कृति का।
किया जाता है
चीर हरण
सभी खिलाडियों का
दायें हाथ द्वारा
मन की लेखनी से
यह बताने जताने के लिये
कि
श्रेष्ठ है केवल
एक खिलाडी
जिसको सयर्थन है
मन का
और खेल के
अंतरराष्ट्रीय नियमों का
जिसका
अनुभव नही है
अन्य खिलाडियों के पास।


आखिर
जीत गया मन
अपनी ही
बिसात की बिसात पर
स्वयं ही
खेल खेलकर
इतिहास रचकर
स्वयं को
महान
अन्य सभी को
बौना- गौण कर।

अ कीर्तिवर्धन
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