हम-सब फाग
--: भारतका एक ब्राह्मण.संजय कुमार मिश्र 'अणु'
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जब अपने पास की
दुष्प्रवृत्ति बढ़ने लगे बेतहाशा
तब घबराओ नहीं तुम
कि कहीं बन न जाऊं तमाशा
बल्कि उसको बढ़ने दो
बदजुबानी को कढने दो
जब लग जायेगा उसका ढेर
फिर सुनाई देगी एक टेर
जो जगा देगी तेरी अंदर आशा
लगा देना तुम मौका पाकर
चुपके से तुम आग
और देखना फिर फूट पड़ेगा कोमल कर्कश राग
जब जल जायेगा ढेर समूल
उड़ेगा तब वह बनकर धूल
बजेगा ढोल,झाल और ताली
मुख- सम्मुख से सुंदर गाली
बनकर कोयल काग
होगा फिर जमकर हुड़दंग
देख-देख सब होगा दंग
रहेगा नहीं फिर ढंग-बेढंग
भूलकर भेद मिलकर एक अंग
दिखेगा फिर अनुपम अनुराग
विहंसेगा मन सुंदर गाल
उड़ने लगेगा रंग गुलाल
झूमेगा तन-मन ताल-बेताल
फिर कौन रहेगा दाग-बेदाग
निकलेगा तब टोली पर टोली
एक साथ बनकर हमजोली
करते परस्पर हंसी-ठिठोली
मिलते जन-जन खिलते तन-मन
ठहर-ठहर कर भागम भाग
चलो मिलकर हम होली गा लें
भूले-बिसरे को गले लगा लें
मिले जहां भी अंग-अनंग
खुलकर डालो रंग पर रंग
बैर भुल होकर एक संग
मिलकर गाएं हम-सब फाग
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वलिदाद,अरवल(बिहार)८०४४०२.
संपर्क -- ८३४०७८१२१७.
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