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बोलो साथी!

बोलो साथी!

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)

अमरबेल लिपटी तरुवर से ,
दोनों की आँखों में आँसू ,
क्या रहस्य है? बोलो साथी!
नौ रत्नों से घटित सुदेह,
ललिताम्बा का पावन गेह ,
ढह जाता हो-होकर झुर-झुर,
काल कराल व्याल अति निष्ठुर ,
'माँ ' क्यों चुप है?बोलो साथी!
चलते चलते पग थक जाते,
मेघ-श्याम कुन्तल पक जाते,
सूने सब पथ के पनसाले,
राही भटक रहे मतवाले ,
ऐसा क्यों है? बोलो साथी!
जो भी जाता , नहीं लौटता,
सफर हो रहा, मगर बेपता,
जर्जर तन,सब पानी पानी,
तृष्णा की पर मत्त जवानी,
विजड़ित ताला, खोलो साथी! 
अब तो कुछ भी, बोलो साथी!
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