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"खामोशियां: दर्द का इजहार"

"खामोशियां: दर्द का इजहार"

शब्दों की जगह,
खामोशियाँ लेती हैं,
जब दिल का दर्द,
अब सहन नहीं होता।

आँखों से आंसू,
बहने लगते हैं,
जब शब्दों में,
दर्द नहीं समाता।

खामोशियाँ,
एक दर्पण हैं,
जो हमारी,
असलियत दिखाती हैं।

खामोशियाँ,
एक शक्ति हैं,
जो हमें,
खुद से जोड़ती हैं।

खामोशियाँ,
एक रहस्य हैं,
जो हमें,
जीवन की गहराईयों में ले जाती हैं।

खामोशियाँ,
एक उपहार हैं,
जो हमें,
खुद को सुनने का मौका देती हैं।

. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित 
 पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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