अंतर के निनाद से विचलित,

अंतर के निनाद से विचलित,

अधर मौन न रेखा स्मित,
स्मृतियों के पुलकित क्षण विस्मृत,
दृग-कोरों पर प्रीत अकम्पित,
तृषित उर में जलधि भर देते,
जो मेरी सुधि तुम ले लेते...
मेरा रुदन मेरा क्रन्दन,,
व्योम में ज्यों विद्युत कंकण।
विरह आग में जली मैं क्षण क्षण,
तेरे मिलन की उत्कंठा प्रतिक्षण,
यादों की मरुभूमि को नीरनिधि कर देते,
जो मेरी सुधि तुम ले लेते...
डॉ. रीमा सिन्हा
लखनऊस्वरचित
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