मेरे ख्वाबों की शहजादी
प्रेम महल की शहजादी मेरे ख्वाबों में आती है ,हाथ बढ़ाकर धरना चाहूं जुगनू सी खो जाती हैं ।
प्रेम सुधा रस में भीगी मेरी अनुपम प्रेम कहानी है,
अरुणोदय की लाली सी छिटकी मेरी प्रिया रूहानी है।
मेरे तृष्णा की बूंदों में तृप्ति रस भोला करती है ,
अधरों पर प्यास लिए भवरों सी डोला करती है।
उसकी रूप रागनी से सूरज भी शर्मा जाता है,
रूप चांदनी का धरकर वह चंदा के संग आता है ।
मासूम गुलाब की पंखुड़ियां सी कोमल उसकी काया है, तिमिर अंधेरी रात में खिलती वह गिरधर की माया है।
अमर बेल लता सी वह लहरा कर आया करती है,
मकरंद सी जीवन में तन मन पर छाया करती है ।
बंद पलक के साए में वह सुहाग सेज सजाती है,
खुली पलक पर विरह राग के गीत हमेशा गाती है
मंजू भारद्वाज
स्वरचित
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