दिनवां कटत ना कटत नाहि रतिया
डॉ. प्रतिभा रानी..
दिनवां कटत ना कटत नाहि रतिया केकरा से कहीं आपन दिलवा के बतिया
अँखियां से दिनराती बरसेला लोर हो
का जानी होई कहिया जिनगी के भोर हो
चिट्ठीया आवत ना आवत नाहीं पतिया
केकरा से कहीं ...........
दियरी के टेह जड़े ओइसे जड़े जियरा
इ काsरी रतिया में केहू नइखे नियरा
लागता कि जइसे मोरा पागल हो जाई मतिया
केकरा से कहीं.............
सास मोरी समझे नाही समझे ना ननदिया
तिले तिले बढ़े पिया दिल के दरदिया
दुखवा के पीर से फाटे मोरी छतिया
केकरा से कहीं.... ...
नीमन नाहीं लागे पिया फागुन के महिनवां
लिखी द तू चिट्ठीया अईब कौने दिनवां
तोहरे करनवां भइले सब गतिया
केकरा से कहीं..........
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