Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

वासंती रंग में रँगी धरती ढूँढती

वासंती रंग में रँगी धरती ढूँढती

डॉ रामकृष्ण मिश्र
चाँदी के पायल की
झनक कहाँ खो गयी।
फूलों की क्यारियाँ नहायी -सी इत्र से
कि मात गयीं मस्ती में भँवरों के नेह से।
झाँकती बधूटियाँ झरोखे से लुक छिप
पर ,बहरातीं नहीं कहीं अपने ही गेह से।।
इठलाती मनुहारिल हवा
तनिक धीरे से
वढ़ती तरुणाई में
लाज बीज बो गयी।।


ऐसा क्या हुआ आज प्रकृति के आँचल में
तरुओं की आँखों के रेशे ललिया गये
पल्लव तो पल्लव मदमस्त से शिराओं पर
छुअन के व्याज से ही भाव पियरा गये।।
मान में कि ठान में
लताओं की जाल तनी
कलियों की स्वेदिमा समेट
मौन हो गयी।।


नदियों के फूहड़ किलोल प्रौढ़ से हैं अब
बाँसुरी सुरीली अमराई में गूँजती
गाँव के सियाने आ ठमका पाहुन सरेक
लगता ,काकली तभी स्वागत में कूकती।।
किरणों की मधु स्पंदित
प्रीति की प्रतिच्छाया
भूले बिसरे अनेक
चित्रों मे सो गयी।। 
रामकृष्ण
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ