Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

ओ मेरे लोचन के नीर

ओ मेरे लोचन के नीर

ओ मेरे लोचन के नीर, मत बन तू अधीर,
चला गया वो पथिक,दे गया वेदना चिर।
चाहा निःश्वास जीवन में श्वासों का प्रस्फुरण,
और भी मर-मिटी रेत में ज्यों सलिल कण।
छू स्मृतियों के बादल मूक हृततंत्री को चूमा,
स्मित आवरण में ज्यों भाव उन्मन।
मृदु मन के इस चितवन में अथाह अश्रुनीर,
चला गया वो पथिक,दे गया वेदना चिर...
सीमान्तता के परे करती रही प्रयास,
बंद दृगों में संजोये स्वप्न का प्रतिपल ह्रास।
आशाओं के कम्पन्न से लौ जलायी,
निजत्व को बुझाई ठहराव की थी आस।
वो नित नये पथ पर भटकने वाला राहगीर,
चला गया वो पथिक,दे गया वेदना चिर...
डॉ रीमा सिन्हा
लखनऊ
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ