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कूक कोयल की,

कूक कोयल की,

कानों में पड़ता सुनाई।
शीत चादर समेटा,
अब बसंत ऋतु आई।
लाल पते अमिया पर,
निकलने लगे हैं।
सिन्दूरी सुबह जैसे,
दृष्य बागों में खिलने लगे हैं।
आम मंजर से,
मधुवा टपकने लगा है।
आम बगिया खुसबू से,
महकने लगा है।
सरसों खेतों में, बागों में,
है पीत रंग छाया।
अब धरती पर सज धज,
ऋतुराज बसंत आया।
अब रंगों की फुहार,
जंह तंह निकलने लगी है।
तन की ठिठुरन गयी,
मोहक बसंती हवा चलने लगी है।
बृद्ध बालक युवा सबमें,
है छा रही तरूणाई।
साथ अपने संदेश यह,
बसंत ऋतु लाई।
यो ही बसंत नहीं ,
ऋतुओं का राजा है।
यौवन और रंग ने इसे,
ऋतुराज से नवाजा है। 
 जय प्रकाश कुंवर
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