मिलना जितना सहल परचना उतना ही मुश्किल है।
डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
मिलना जितना सहल परचना उतना ही मुश्किल है।
सपना जो जितना दिलकश था, उतना ही बिस्मिल है।
चाबी ही खो गई अगर, ताला किस कदर खुलेगा ,
जीवन एक अजब शै है, हर पल जिसका कातिल है।
नदी सरल है और तरी भी परी-सरीखी सुन्दर ,
पार उतरने का न भरोसा, केवट ही जाहिल है ।
ताक़त ताक हुई चिराग की, रात बहुत लम्बी थी,
जलता रहा दीप तो अपना लहू जला तिल तिल है।
सबकुछ तो है, दुनिया भी जैसी थी, वैसी ही है -
सपना जो जितना दिलकश था, उतना ही बिस्मिल है।
चाबी ही खो गई अगर, ताला किस कदर खुलेगा ,
जीवन एक अजब शै है, हर पल जिसका कातिल है।
नदी सरल है और तरी भी परी-सरीखी सुन्दर ,
पार उतरने का न भरोसा, केवट ही जाहिल है ।
ताक़त ताक हुई चिराग की, रात बहुत लम्बी थी,
जलता रहा दीप तो अपना लहू जला तिल तिल है।
सबकुछ तो है, दुनिया भी जैसी थी, वैसी ही है -
एक तुम्हारे बिना प्राण! लगती सूनी महफिल है।
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