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इस राम के राज में

इस राम के राज में

अरविन्द कुमार पाठक "निष्काम"
इस राम के राज में
क्या नही है!
कालनेमी ,रावण,खर दूषण
सब तो हैं !
अपने ही गली मोहल्ले में
आज नही हैं तो !
विभीषण और मंदोदरी
अपने अपने परिवार में।
कथा है सत्संग है !
मनोरंजन ,जन रंजन
गली गली में राम ही राम हैं
कहाँ ढूढोने जाओगे
सनातन का आदर्श
क्या तुम्हें दिखत नही !
खुले आम मंच पर अराजकता
अट्टहास करते हुए विराजमान हैं ।
पीठ , पीठ की रट लगाए रहते हो
मठाधीशों के मेले में, झमेले में
केवल पीठ पर बैठने की होड़ में
क्या तुम्हें सनातन धर्म की रीढ़ बिहीन
मंडली दिखती नहीं!आजकल
जहाँ जगद्गुरू बनाने की
सुंदर से अति सुंदर दुकान हैं।
तुलसी ,कबीर,रैदास,को कौन पढ़े
पढ़ पढ़ कर कौन मरे
मरने की कला में कौन उलझे
मृत्यु लोक में , मृत्यु से कौन डरे
इस लोक की मर्यादा जब!
मरने की ही शाश्वत है ?
फिर मरने से कौन डरे!
तभी तो !
सनातन संस्कृति को मिटाने के लिए
सबने खोल ली है
अपनी अपनी स्वार्थी दुकान है।

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