जान पाया


जान पाया

देखकर तुमको हमें याद आया
जिंदगी की हकीकत को जाना पाया।
देखकर तुमको हमें याद आया।
मोहब्बत को दिल में जगा पाया।।


हम जिसे प्यार मोहब्बत समझते थे
वो तुम्हें सिर्फ हमारी दोस्ती ही लगी।
वक्त ने देखो फिरसे कैसा खेल खेला।
और फिर हम दोनों को मिला दिया।
ये मोहब्बत नहीं तो और क्या है ?


जोड़ियाँ तो ऊपर वाला बनता है।
फिर उनसे वो ही मिलवाता है।
विधाता ने ये खेल खुद रचा है।
और मेहबूब को मेहबूबा से मिलता है।
ये विधाता का प्यार नहीं तो क्या है।।


जब भी दिलमें उदासी छाती है।
दूर करने को वो आ जाती है।
फिर दिलको वो सहलाती है।
और दिलकी उदासी को भगाती है।
क्या ये ही मोहब्बत है या कुछ और।।


देखकर तुमको हमें याद आया
जिंदगी की हकीकत को जाना पाया।
देखकर तुमको हमें याद आया।
और मोहब्बत को दिलमें जगा पाया।।


जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना"
मुंबई
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