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जन जन का प्यारा

जन जन का प्यारा

भारत माॅं का जो राजदुलारा ,
जिसका हो जन जन प्यारा ,
जिसने राष्ट्र पे निज को वारा ,
एक है होता जिसका इशारा ।
भारत को परिवार स्वीकारा ,
बना पड़ा है जो विश्व में न्यारा ,
अधमों का जहाॅं चले न चारा ,
बन न सका जो कहीं बेचारा ।
रवि सा गर्म शशि सा शीतल ,
नहीं कोई रांगा या है पीतल ,
एक ही बना है जो अब तक ,
विश्व के ही इस पावन भू तल ।
नहीं कोई तारा पुच्छल तारा ,
जिसका प्रिय है संसार सारा ,
विवेकहीन विवेकशील हारा ,
देवों का दूत देवों का इशारा ।
उज्ज्वल निश्छल उर जिसका ,
व्यभिचारी जिससे ले किनारा ,
भारत का एक एक नागरिक ,
नरेंद्र मोदी का परिवार सारा ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार ।
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