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शब्दार्थ प्रकाश (संवैधानिक,धार्मिक, न्यायिक , प्रशासनिक शब्दों की परिभाषा)|

शब्दार्थ प्रकाश 

संवैधानिक,धार्मिक, न्यायिक , प्रशासनिक शब्दों की परिभाषा |

लेखक:-     पंडित कृष्ण बल्लभ शर्मा 'योगीराज' 
                (न्यायविद = JURIST; अधिवक्ता - पटना उच्च न्यायालय) 
                संचालक अध्यक्ष - वेदरत्न विद्यालय गुरुकुल |

वेदरत्न विद्यालय गुरुकुल का दिव्य ज्ञान 

 व्यावहारिक शब्दों की शासकीय प्रमाणिक परिभाषा |

  • न्यायस्य अर्थः सम्पूर्ण स्वरूपेण धर्मस्य विजयः अस्ति 
  •  Justice means Victory of Dharma in all its features.

  • 1. वेद = समस्त ज्ञान विज्ञान विद्या के मंत्रबद्ध वैज्ञानिक सूत्र = ॐ अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् | होतारं रत्नधातमम् | (ऋग्वेद १.१.१)
  • 2. चार वेद = ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद | वेद सूक्त = मंत्रबद्ध वैज्ञानिक सूत्र संकलन (Compendium of Scientific Formula) |
  • 3. उपवेद = (1) आयुर्वेद= चिकित्सा विज्ञान के मंत्रबद्ध/श्लोकबद्ध वैज्ञानिक सूत्र (2) धनुर्वेद= सैन्यविज्ञान के मंत्रबद्ध/श्लोकबद्ध वैज्ञानिक सूत्र (3) गन्धर्ववेद= नाट्यशास्त्र गायन वादन एवं संगीत विज्ञान के मंत्रबद्ध/श्लोकबद्ध वैज्ञानिक सूत्र (भरतमुनि का नाट्यशास्त्र) (4) शिल्पवेद = गणित वास्तुशास्त्र अभियंत्रण तकनीक, मंदिर भवन नगर एवं विमान-निर्माण विज्ञानके मंत्रबद्ध/श्लोकबद्ध वैज्ञानिक सूत्र (5) अर्थवेद= अर्थशास्त्र राजनीतिशास्त्र न्यायशास्त्र विधिविज्ञान लोकप्रशासन (Public Administration) के मंत्रबद्ध वैज्ञानिक सूत्र (कौटिल्य अर्थशास्त्र)|
  • ४. धर्म (धर्म सूत्र) = सत्यं बृहद् ऋतं उग्रं दीक्षा तपो ब्रह्म यज्ञः पृथिवीं धारयन्ति | (अथर्ववेद, १२.१.१) | भावार्थ = नित्य धारणीय शाश्वत सत्य सनातन धर्म के 7 आधार स्तम्भ हैं:- (1) सत्य (2) ऋत (3) उग्र (4) दीक्षा (5) तप (6) ब्रह्म (7) यज्ञ |
  • ५. सत्य = देश (स्थान विशेष) काल (समय परिस्थिति विशेष) पात्र (व्यक्ति विशेष) को ध्यान में रखकर उचित वचन कर्म व्यवहार |
  • ६. ऋत = व्यक्तिगत पारिवारिक सामाजिक व्यावसायिक कार्यों का सही तरीका से सही रूप में सही समय पर उचित कार्य-सम्पादन |
  • ७. उग्र = समाज में शान्ति व्यवस्था हेतु उग्र रूप धारण करके अधर्मी कुकर्मी अपराधी आतंकवादी को तुरंत अथवा शीघ्र समानुपातिक दंड देना|
  • ८. दीक्षा= प्रकृति प्रदत्त मूल स्वभाव-गुणके अनुरूप विशिष्ट व्यावसायिक शिक्षा-प्रशिक्षण एवं सभी उपयोगी विषयों की सामान्य शिक्षा; मंत्रदीक्षा|
  • ९. तप = विपरीत परिस्थितिमें रहकर भी व्यक्तिगत पारिवारिक सामाजिक व्यावसायिक कार्यों का सही तरीका से सही समय पर उचित सम्पादन|
  • १०. ब्रह्म = निराकार परब्रह्म परमात्मा ईश्वर एक है | निराकार परब्रह्म परमात्मा ही साकार रूप में भी व्यक्त है तथा कण-कण में विद्यमान होकर ब्रह्माण्ड में व्याप्त है | सभी ईष्ट देवी-देवता परमात्मा के अंश/रूप हैं | यत् पिंडे तत् ब्रह्माण्डे | जो एक छोटे पिंड में है वही ब्रह्माण्ड में व्याप्त है |
  • ११. यज्ञ= धारणीय विकास का आधार यज्ञ के 7 अंग:- 1. मंत्रोच्चारण 2. हवन 3. बलि 4. दान 5. दक्षिणा 6. परिवारकल्याण 7. समाजकल्याण |
  • १२. बलि= दैनिक 5 बलि एवं यज्ञ में 7 बलि:- 1. गोबलि 2. श्वानबलि 3. काकबलि 4. देवबलि 5. पिपीलिकादिबलि 6. नरबलि 7. अश्वबलि |भावार्थ= गाय कुत्ता कौवा-पक्षी अग्नि-देवता चींटी अतिथि घोड़ा/वाहन-चालक को प्रेम आदर श्रद्धाके साथ भोजन देकर स्वयं भोजन करना |
  • १३. दान = गुरुकुल विद्यालय, चिकित्सालय, मंदिर, धर्मशाला, धार्मिक न्यास, धार्मिक संगठन, धार्मिक संस्थान की स्थापना-संचालन हेतु ब्रह्मज्ञानी सुपात्र ब्राह्मण देवता को सादर देय धनराशि चल-अचल संपत्ति | सभी समुदाय के सभी व्यक्ति एवं सरकार राजा-प्रजा सबके लिए निर्धारित न्यूनतम दान=आय का 10% (दसांश)| अधिकतम दान की सीमा नहीं | अधिकतम सर्वस्व दान | कुपात्र को कुछभी दान देना वर्जित|
  • १४. दान-संपत्ति = विशिष्ट भावना से संकल्पित दान की संपत्ति का उपयोग उसी विशिष्ट कार्य-संपादन हेतु करना विहित है | अन्य प्रयोग वर्जित |
  • १५. दक्षिणा = सुपात्र ब्राह्मण देवता गुरु पुरोहित शिक्षक चिकित्सक विधि-सलाहकार को सादर देय सेवा-शुल्क; सेवा-शुल्क=निजी आय-संपत्ति |
  • १६. मंदिर / मठ = आगम शास्त्र की विधि-विधान द्वारा निर्मित विशिष्ट देवी-देवता की मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा से युक्त विशिष्ट धर्मस्थल = सभागार की सुविधायुक्त शिक्षा रक्षा सेवा व्यवसाय व्यापार विवाहोत्सव सामाजिक-उत्सव का केंद्रीकृत गढ़ (Fortress of All Social Functions) |
  • १७. ब्राह्मण देवता= वंश-परम्परा एवं गुरु-परम्परा से दीक्षित सदाचारी कल्याणकारी दुर्गुणमुक्त सद्गुणयुक्त ब्रह्मज्ञानी धर्मनिष्ठ संस्कारी मार्गदर्शक |
  • १८. ब्राह्मण (ब्रह्मज्ञानी धर्मनिष्ठ संस्कारी बुद्धिजीवी मार्गदर्शक) हेतु निर्धारित कर्म-व्यवसाय = गुरु पुरोहित, शिक्षक, चिकित्सक, वैज्ञानिक, दार्शनिक, अर्थशास्त्री, नीतिशास्त्री, वास्तुशास्त्री, ज्योतिषी, गणितज्ञ, प्राध्यापक, विभागाध्यक्ष, प्राचार्य, कुलपति, वक्ता, अधिवक्ता, न्यायाधीश, पुजारी, शिल्पी, विधि-सलाहकार, सैन्य-सुरक्षा सलाहकार, प्रशासक, सांसद, विधायक, मंत्री मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री, कवि लेखक गायक वादक |
  •  १९ . क्षत्रिय (धर्मध्वजरक्षक धर्मनिष्ठ संस्कारी योद्धा/राजपुत्र/राजपूत) हेतु निर्धारित कर्म-व्यवसाय:- राजा, महाराजा, सम्राट, चक्रवर्ती सम्राट, सामंत, दरबारी, क्षेत्र-रक्षक, ग्रामरक्षक, नगररक्षक, समाजरक्षक, राष्ट्ररक्षक, सेनानायक, सेनापति, योद्धा रथी अतिरथी महारथी, शासक जमींदार आदि|
  • २०. वैश्य (धर्मनिष्ठ संस्कारी व्यवसायी) हेतु निर्धारित कर्म-व्यवसाय = कृषक (किसान), पशुपालक, गौपालक, उद्योगपति, व्यापारी, दुकानदार, स्वर्णकार (सोनार), कुम्भकार (कुम्हार), लोहार, बढ़ई, तेली, बनिया, वणिक, धुनिया, धोबी, नाई, मूर्तिकार, बुनकर, वस्त्र निर्माता, दर्जी आदि लाभकारी व्यवसाय में संलग्न सभी प्रकार के सभी व्यवसायकर्मी | धर्मनिष्ठ और संस्कारी होना सभी वर्ण के सभी व्यक्ति के लिए आवश्यक है |
  • २१. शूद्र (धर्मनिष्ठ संस्कारी व्यवसाय-सहायक) हेतु निर्धारित कर्म-व्यवसाय= गृह-कार्य सहायक, कार्यालय सहायक, कृषि-सहायक, सफाईकर्मी, उद्योग-सहायक, वाणिज्य-व्यापार सहायक, सुरक्षाकर्मी, सैनिक, पदचर, आदेशपाल, गृहसेवक | कोई कर्म-व्यवसाय छोटा-बड़ा उंच-नीच नहीं |
  • २२. म्लेच्छ (धर्मभ्रष्ट बुद्धिभ्रष्ट दुर्गुणयुक्त संस्कारहीन दुष्ट व्यक्ति/प्रचंड मूर्ख/ढकलेल बकलोल) हेतु निर्धारित कर्म-व्यवसाय = दैनिक मजदूर, कुली, भारवाहक, खलासी, पदचर, पदाति सैनिक, रिक्शा-ठेला चालक, दास, दासी, दाई नौकर | योग्यताके अनुसार सबके लिए रोजगार आजीविका|
  • २३. नित्य त्याज्य 10 दुर्गुण= (1) ईर्ष्या (2) द्वेष (3) क्रोध (4) लोभ (5) पूर्वाग्रह (6) पक्षपात (7) घृणा (8) मोह (9) भय (10) अहंकार | मानसिक मल रुपी दुर्गुण धर्मभ्रष्ट बुद्धिभ्रष्ट बनाकर विवेक निर्णय क्षमता समाप्त करके वात-पित्त-कफ का संतुलन बिगाड़कर बीमारी पैदाकरते हैं|
  • २४. नित्य धारणीय 12 सद्गुण = (1) धैर्य = धीरज (2) धृति = दृढ निश्चय, पक्का इरादा, फौलादी इच्छाशक्ति (3) दम = स्व-अनुशासन एवं आत्म नियंत्रण (4) दया (5) क्षमा (6) प्रेम (7) परोपकार (8) विनम्रता (9) निर्भीकता (10) साहस (11) अध्यवसाय (12) विश्वबंधुत्व |
  • २५. संस्कार = श्रेष्ठ संतान उत्पन्न करने तथा सबके स्वस्थ सफल सुखमय जीवन हेतु निर्धारित 16 संस्कार के रूप में विहित कर्म एवं उत्सव का वैज्ञानिक विधान है:- (1) गर्भाधान (2) पुंसवन (3) सीमन्तोन्नयन (4) जातकर्म (5) नामकरण (6) निष्क्रमण (7) अन्नप्राशन (8) चूड़ाकर्म (9)कर्णवेध (10) उपनयन (11) वेदारम्भ (12) समावर्तन (13) विवाह-गृहस्थआश्रमप्रवेश (14)वानप्रस्थ (15)संन्यास (16) अंत्येष्टि संस्कार|
  • २६. विवाहसंस्कार= समान गुण-संस्कारयुक्त श्रेष्ठ वर के साथ कन्याका विवाह; स्त्री-पुरुष के दिल दिमाग मन शरीर आत्मा का स्थायी मिलनोत्सव|
  • २७. सनातन गुरुकुल= व्यावहारिक वैज्ञानिक सुव्यस्थित सम्पूर्ण सार्थक गुरुकुल शिक्षापद्धति; मंत्रदीक्षा (Systematic Scientific Education)|
  • २८. सनातन गुरुकुल पाठ्यक्रम (Syllabus) = (1) वेदविज्ञान = Science of Veda (2) आयुर्विज्ञान = Health Science and Medical Science (3) योगविज्ञान = Science of Yoga (4) धर्मविज्ञान = Science of Dharma (5) अर्थविज्ञान = Science of Economics (6) न्यायविधिविज्ञान = Science of Law and Justice (7) व्यवहारविज्ञान = Behavior Science (8) सैन्यविज्ञान = Military Science (9) भाषाविज्ञान= Linguistics (10) प्रकृतिविज्ञान= Natural Science, Physics, Chemistry, Biology (11) समाजविज्ञान = Social Science (12) गणनाविज्ञान = Mathematics (13) व्यवसायविज्ञान= Professional (14) जीवनकला= Art of Living.
  •  २९. वर्ण-व्यवस्था= प्रकृति प्रदत्त मूल स्वभाव-गुण के अनुरूप कर्म-व्यवसाय धारण; समान गुण-संस्कार से युक्त श्रेष्ठ वर के साथ कन्या का विवाह|
  • ३०. जातिप्रथा= जातिगत-व्यावसायिक संस्कार एवं ज्ञान-विज्ञान-तकनीक के उत्तरोत्तर विकास हेतु स्वैच्छिक पारिवारिक व्यवसाय धारण-परम्परा |
  • ३१. राजतंत्र = श्रेष्ठ समाज निर्माण एवं शासन-संचालन हेतु राजा द्वारा सर्वश्रेष्ठ सुयोग्य न्यायप्रिय धर्मनिष्ठ संस्कारी उत्तराधिकारी शासक का चयन |
  • ३२. जनतंत्र/प्रजातंत्र=श्रेष्ठ समाज निर्माण एवं शासन-संचालन हेतु जनमत द्वारा सर्वश्रेष्ठ सबसे सुयोग्य न्यायप्रिय धर्मनिष्ठ संस्कारी शासक का चयन|
  • ३३. न्याय= न्याय का अर्थ सम्पूर्ण स्वरुप में धर्म की विजय है | यतो धर्मस्ततो जयः | “कर्त्तव्य जहां अधिकार वहीं | कर्त्तव्य बिना अधिकार नहीं |”
  •  ३४. न्याय विधान= (1) श्रेष्ठ कर्म हेतु पुरस्कार (2) गलती हेतु क्षमा (3) अपराध हेतु शीघ्र समानुपातिक दंड (4) निर्दोषकी रक्षा (5) पीड़ित हेतु समुचित क्षतिपूर्ति|
  • ३५. राजा शासक न्यायाधीश= न्याय ईश्वरीय कर्म है; ईश्वरके प्रतिनिधि राजा शासक न्यायाधीश को 10 दुर्गुणसे मुक्त 12 सद्गुणधारक होना चाहिए|
  • ३६. विधि-निर्माता/सांसद/विधायक/जनप्रतिनिधि/मुखिया= धर्मविज्ञान-न्यायविधिविज्ञान-ज्ञाता दुर्गुणमुक्त सद्गुणयुक्त धर्मनिष्ठ संस्कारी व्यक्तिकी नियुक्ति|
  • ३७. शासकीय पद पर नियुक्ति= न्यायिक/वैधानिक/शैक्षणिक/प्रशासनिक पदपर दुर्गुणमुक्त सद्गुणयुक्त धर्मनिष्ठ संस्कारी व्यक्ति की नियुक्ति; दुष्ट-भ्रष्टकी नियुक्ति वर्जित|
  • ३८. सम्प्रदाय/ पंथ = विशिष्ट गुरु के शिष्यों की विशिष्ट ज्ञान परम्परा; यथा:- शैव, शाक्त, द्वैत, अद्वैत, विशिष्टाद्वैत, बौद्ध, जैन, सिख, नाथ सम्प्रदाय|
  • ३९. मज़हब (Religion)= धर्म-मार्ग से भटके हुए प्रचंड मूर्खों का टकराववादी संगठन; प्रार्थना-पद्धति भाषा, वस्त्र, पर्व-परंपरा में भेद आधारित टकराव|
  • ४०. पंथ निरपेक्ष (Secular)=धर्म-मार्ग से भटके हुए प्रचंड मूर्खों द्वारा पूजापद्धति भाषा पर्व वस्त्र परंपरा में भेद आधारित मतभेद से निरपेक्षता का भाव|

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