अपना घर में
अपना घर में जवन होखे ,दोसरा के करिले न्याय ।
अपना घर में भांग लोटे ,
दोसरे के देखिला आय ।।
उसकी चाल आदत हमर ,
एने ओने झगड़े लगाईले ।
चुपके से चिनगारी फेंक ,
मारो पिट हम कराईले ।।
धीरे से चिनगारी सुलगे ,
बढ़ जाला तब तकरार ।
शांति अशांति में परिणत ,
बिदा तब खुशहाली प्यार ।।
एहु से जब मन ना भरे ,
केसो मुकदमा कराईला ।
लाग जाले धन के थाह ,
समझौता पत्र भरवाईला ।।
अपनो घर खुश ना रहे ,
दोसरे के आग लगाईला ।
फायदा होय कुछो नाहीं ,
रारे देख हिरदा जुड़ाईला ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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