शिव सती और हवनकुंड
है प्रचंड,वो अनंग,शक्तिरूपा वरदायिनी,प्रबुद्ध,शुद्ध,शिवप्रिया वरदहस्त सहगामिनी।
क्षुभित खड़ी पितृ दक्ष के घोर अपमान से,
पति अनादर से क्रुद्ध यज्ञ कुंड समाहिनी।
अटल शाश्वत,चराचर शिव शम्भु के खुले नेत्र,
भस्म दक्ष यत्र तत्र विक्षप्त हवन कुंड का क्षेत्र,
प्रिया वियोग से विकल संसर्ग पर गिरी सौदामिनी,
समाधिविलीन अर्धनारीश्वर,विलग हुईं अर्धांगिनी।
शिवाय शिवाय सती शिवाय,शिव सती एकाकार है,
नहीं पृथक,है सकल,जगत का आधार है।
है शशि सूर्य वही,जल-थल और वह दिवा यामिनी,
प्रचंड वेग,आरंभ अंत,शिव पार्वती मोक्षदायिनी।
डॉ रीमा सिन्हा
(लखनऊ)
स्वरचित
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