मेरा स्वप्न साकार
---: भारतका एक ब्राह्मण.संजय कुमार मिश्र 'अणु'
ऐसा
सिर्फ और सिर्फ
मुझे लगा कि
तुम्हीं हो सकती हो
मेरी हमसफ़र
और मैं लगातार
करता रहा प्रयास
रहने को तेरे आसपास
बनने को तेरा खास
पर तुम बनी रही
मेरे प्रति बेनजर
तेरी उदासीनता देखकर भी
नहीं हुआ मैं कभी हताश
बस लगा रहा मैं कि
कभी न कभी तुम्हें होगा
मेरी मुहब्बत का एहसास
उससे बढ़कर
और मेरे प्रयास का वो रंग
देर से हीं सही पर
दिखा रहा है अपना असर
जो तेरी निगाहें
मुझे खोज रही है दर दर
चलो ये भी अच्छा हुआ कि
तेरे दिल में मेरे प्रति हुआ प्रेम अंकुरित
जिसे देख मेरा प्रश्न नहीं रहा अनुत्तरित
जो मिल गई मुझे तुम इस कदर
मैं तो चाहता हीं था कि
तेरा भी दिल मुझे चाहे
जिसके भयावह कुचक्र में तुम
जो उलझ गई थी अनचाहे
बदलकर राहें
अपना परिवार और घरवार
तुम आई जो मुड़कर
बड़ा अच्छा लगा जानकर
कि देर हीं सही पर चेत गई
और मुझे मेरी किस्मत भेंट गई
आओ बांहों में भर लूं
आज तुझे दिल खोलकर यार
जो कर दिए हो तुम
आज मेरा स्वप्न साकार
------------------------------------------------------वलिदाद,अरवल(बिहार)८०४४०२.
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