दूर बैठे प्रियतम हैं, आने की आश है।
मन है जो माने ना, फागुन मधुमास है।।साल भर संदेश दिये, मिलने की आश दिये।
जाड़ा भी बीत गया, दिल को कठोर किये ।।
भौंरे भी अब बगिया में, गुनगुनाते घुम रहे।
बैठ बैठ फुलों पर, पुष्प रस को चुस रहे।।
जितना समझाउं दिल बहक बहक जाता है।
ऐसे मधुमास में, दिल को कुछ नहीं सुहाता है ।।
सखियाँ सहेलियाँ सब, रंग लिए आती हैं।
बिरहन का रूप देख , मायूस लौट जाती हैं।।
अब ना कठोर बनो, बिरहन की कुछ तो सुनो।
नफरत भरी दूनिया में, बस प्रेम ही एक नाता है।
ऐसे मधुमास में मुझे, अब कुछ नहीं सुहाता है।।
देखो कहीं फागुन, दरवाजे से लौट न जाए।
अपने जीवन में केवल, विरह का पतझड़ रह जाए।।
जय प्रकाश कुवंर
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