फेरे दोनों ने साथ लिए,
पर अब ये कैसा फेरा है।
मैं कहता हूँ कि सुबह हुआ,
तुम कहती अभी अंधेरा है।
कुछ वादे फेरे संग हुए,
दोनों को जिसे निभाना था।
अपने अपने सुर कभी नहीं,
हमें एक ही सुर में गाना था।
अब अनबन खटपट होता है,
क्या बुढ़ापे का यही तकाजा है।
तेरा दिल तेरे मन की रानी है,
मेरा दिल मेरे मन का राजा है।
दादा दादी को देखे थे,
हर बात पर उनको लड़ते हुए।
पर पास ही दोनों बैठेंगे,
हंसी मुख पर सदा झगड़ते हुए।
शायद अपना भी दिन वही,
अब उम्र ढले पर आया है।
लड़कर कहना खाना खालो,
तेरा अदा ये मन को भाया है।
जय प्रकाश कुवंर
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