Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

मौत के मुहँ से

मौत के मुहँ से

मदनमोहन तरुण
मौत के मुहँ से निकलकर आगया मैं
जिंदगी आखिर तुझे ही भा गया मैं।
सर्द अँधियारा विकट घनघोर
प्रेत आकृतियाँ भयावह शोर
ओह लम्बी माँद जलती राह
पोर पोर मरोर दर्द अथाह
चीरता तन चीथता मन, भेड़ियों का झुंड
नहीं लगता पता पाँव कहाँ, कहाँ है मुंड।
मौत की गलियों में था कितना अँधेरा
झीनी झीनी रोशनी थी भूत प्रेतों का बसेरा
क्रूद्ध पशु हुंकारते थे चबाते थे बोटियाँ।
चूसते थे खून सिट्ठी तन- बदन थे चीखते
नाश क्रंदन वेदना वीभत्सता का खेल
तन कुचलते इस तरह ज्यों पेरते हों तेल।
खत्म जीवन कहाँ , मौत कहाँ शुरू ?
कुछ पता चलता नहीं हम हैं कहाँ ?
कहाँ धरती खत्म, होता शुरू कब पाताल ?
कहाँ खत्म अनंत शापित शून्य का अधिवास ?
मौत से है जिंदगी विकराल
फटे से है सिवन जटिल कराल
कब कहाँ मैं था कहाँ पर आगया
किस गुफा के द्वार से टकरा गया ?
मौत के मुहँ से निकलकर आगया मैं
जिंदगी आखिर तुझे ही भा गया मैं।
मदनमोहन तरुण


हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ