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"चाबी दिल के दरवाज़े की"

"चाबी दिल के दरवाज़े की"

उसके दिल के दरवाज़े पर लगी वो चाबी हूं मैं,
ना मैं दिल खोल पाई, ना दस्तक दे पाई।


उसकी आँखों में डूबकर, उसकी हंसी में खिलकर,
मैंने उसके दिल का रास्ता ढूंढने की कोशिश की।


लेकिन हर बार मैं नाकाम रही,
उसके दिल के दरवाज़े बंद रहे।


मैंने सोचा, शायद मैं चाबी नहीं हूँ,
शायद मैं किसी और दरवाज़े के लिए बनी हूँ।


दिल में उम्मीद थी, कि एक दिन उसके दिल का दरवाज़ा खोल पाऊंगी।
और उस दिन मैं उसके दिल में प्रवेश कर पाऊंगी।


लेकिन वो दिन कब आएगा,
यह मैं नहीं जानती।
मैं बस इंतजार कर सकती हूँ,


उस दिन का, जब मैं उसके दिल का दरवाज़ा खोल पाऊंगी।
और उस दिन मैं उसके दिल में प्रवेश कर पाऊंगी।


उसके दिल के दरवाज़े पर लगी वो चाबी हूं मैं,
ना मैं दिल खोल पाई, ना दस्तक दे पाई।


लेकिन मैं उम्मीद नहीं छोड़ रही हूँ,
एक दिन मैं उसके दिल का दरवाज़ा खोल पाऊंगी।


. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित 
 पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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