"सिसकियां और लफ़्ज़"
कुछ बात मुख्तसर रहे तो बेहतर है,
हमनें सुना है लफ्जों से सिसकियां बेहतर है।
दिल की बातें जब ज़ुबां पर आती हैं,
तो अक्सर वो अधूरी रह जाती हैं।
दिल के दर्द को छुपाना सीख लो
आँखों में आंसू लाना बेहतर है
शब्दों में ताकत होती है
लेकिन कभी-कभी खामोशी बेहतर है
खामोशी कभी-कभी क्यों बेहतर है,
क्योंकि लफ्जों से गलतफहमी होती है।
आंखों में जो दर्द होता है,
वो लफ्जों में बयां नहीं होता है।
इसलिए कुछ बात मुख्तसर रहे तो बेहतर है,
हमनें सुना है लफ्जों से सिसकियां बेहतर है।
अपनी भावनाओं को व्यक्त करो
लेकिन कभी-कभी चुप रहना बेहतर है
यूं तो हर कोई अपना दर्द बयां करता है,
लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं होता है।
इसलिए दर्द को खुद ही सहना बेहतर है,
क्योंकि दूसरों से उम्मीदें लगाना बेकार है।
इसलिए कुछ बात मुख्तसर रहे तो बेहतर है,
हमनें सुना है लफ्जों से सिसकियां बेहतर है।
खामोशी में ही अपना दर्द ढूंढो,
और खुद ही अपनी दवा बनो।
यहां कोई तुम्हारा दर्द नहीं समझ सकता,
इसलिए खुद ही तुम अपना सहारा बनो।
इसलिए कुछ बात मुख्तसर रहे तो बेहतर है,
हमनें सुना है लफ्जों से सिसकियां बेहतर है।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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